Saturday, October 22, 2011

अमेरिका ने कह दिया, अब ज़रूर कुछ न कुछ हो जायेगा.

अमेरिका की साख केवल अंतर-राष्ट्रीय मुद्दों पर ही प्रभाव नहीं रखती, बल्कि कई देशों के स्थानीय विवादों में भी मार्गदर्शक बनती है.
राजस्थान भारत का सबसे बड़ा प्रान्त है. भारत के कई राज्य , जिनमें छोटे-छोटे राज्य भी शामिल हैं, अपनी-अपनी भाषा को मान्यता दिए हुए हैं. कई भाषाओँ को तो सरकारी राजभाषा के समकक्ष भी दर्ज़ा मिला हुआ है. लेकिन राजस्थानी भाषा को मान्यता की बात जब भी आती है, कहा जाता है कि राजस्थान की कोई एक भाषा नहीं है, जिसे राजस्थानी कहा जा सके. यहाँ मेवाड़ी, मारवाड़ी, हाडौती, ढूँढाडी, शेखावाटी आदि कई भाषाएँ हैं. 
यह तर्क अन्य राज्यों में नहीं चल रहा.जिन राज्यों ने अपनी क्षेत्रीय भाषा को मान्यता देरखी है, वहां भी एकाधिक भाषाएँ हैं.
पिछले दिनों अमेरिका की संस्था "राना" ने भी इस बात का समर्थन किया कि राजस्थानी को मान्यता मिलनी ही चाहिए. ऐसा वहां रह रहे राजस्थानी परिवारों की राय जानने के बाद कहा गया. 
देखने में आ रहा है कि राना की इस आवाज़ के बाद यहाँ भी मांग करने वालों की हलचलों में ताजगी आई है और उन लोगों ने भी इस मुद्दे को गंभीरता से देखना शुरू किया है, जो अब तक इस पर उदासीनता अपनाए हुए थे.    

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हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...