मैं जब पिछले साल न्यूयॉर्क के मैडम तुसाद म्यूजियम में गया था, तो वहां घूमते हुए मुझे यह महसूस हुआ था कि इसमें भारतीय लोग कम हैं, कुछ और होने चाहिए. फिर हमें यह बताया गया कि लन्दन वाले संग्रहालय में भी कुछ नए लोगों की प्रतिमाएं शोभायमान हैं. उन दिनों वहां ऐश्वर्या राय के होने की चर्चा ताज़ा थी.
म्यूजियम तो प्राचीनता की संग्रह-स्थली होते हैं. नए लोग तो वैसे ही जन-भावनाओं में छाये हुए होते हैं. जिन लोगों को रोज़ मीडिया में देखा जा रहा है, वे तो वैसे भी म्यूजियम में रखे अप्रासंगिक ही लगते हैं.
इसी सोच के चलते लगा था कि शायद वहां अब नर्गिस, मधुबाला, वैजयंतीमाला, मीना कुमारी, साधना, हेमा मालिनी, रेखा, श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित, काजोल, रानी मुखर्जी के बीच से चुनी गई कोई शख्सियत देखने को मिलेगी.
अमिताभ बच्चन और शाहरुख़ खान के बाद अशोक कुमार, राजकपूर, देवानंद, दिलीप कुमार, राजेंद्र कुमार, सुनील दत्त, शम्मी कपूर, राजेश खन्ना आदि पर संग्रहालय के चयन-कर्ताओं का ध्यान जायेगा, यह भी उम्मीद जगी थी.
लेकिन कहते हैं कि जो जीता वही सिकंदर.
करीना कपूर को भव्य और शानदार बधाई, कि उन पर अंतरराष्ट्रीय जगत के प्रतिष्ठित लोगों का ध्यान गया. सैफ अली के पिताश्री को खोने की दुखद छाया जो पिछले दिनों उन्होंने झेली थी, उसे हटा कर अब इस कामयाबी की चमकती धूप उन्हें मुबारक.
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