मुर्गी में भी अन्य सभी की तरह मातृत्व का अहसास होता है. जब वे अपने अंडे सेती है तो उसकी कल्पना में उसके आने वाले दिनों और बच्चों की कल्पना ही होती है. यह बात अलग है कि किसे कितनी और कैसी जिंदगी मिले.
एक जौहरी ने अपने मालदार ग्राहकों को कुछ करोड़ रूपये के हीरे जवाहरात बेचते समय चालाकी खेली. उसने रुपये तो असली रख लिए पर जवाहरात नकली दे दिए. खालिस पत्थर के.
ग्राहक के साथ तत्काल कोई धोखाधड़ी नहीं हुई, क्योंकि अर्थशास्त्र की भाषा में उसे पूरी ग्राहक-संतुष्टि मिलती रही. जब ग्राहक को यह पता ही नहीं चला कि जिन वस्तुओं को वह तिजोरी में रख कर आराम से सो रहा है, वह करोड़ों की नहीं, बल्कि कौड़ियों की हैं, तो सौदे से असंतुष्ट होने का सवाल ही नहीं है. असंतुष्टि अचानक तब हुई जब ग्राहक को माल नकली होने का पता चला.
तत्काल रिपोर्ट, क़ानूनी-कार्यवाही आदि की प्रक्रिया शुरू हो गई. पुलिस और कोर्ट ग्राहक को उसके पैसे वापस दिलवा देते हैं, या खुद व्यापारी ही अपनी साख बचाने के लिए चुपचाप पैसे लौटा देता है, इन दोनों ही परिस्थितियों में क्या व्यापारी को " ग्राहक के पांच साल तक करोडपति होने के सुखद अहसास "का मूल्य या मुआवजा नहीं मिलना चाहिए? शायद नहीं, क्योंकि करोड़ों के हीरे पास में होने का झूठा अहसास ग्राहक के साथ था, और वास्तव में करोड़ों रूपये होने की खरी हकीकत व्यापारी के साथ.
ग्राहक का मुआवजा मूल्य से कहीं ज्यादा बनता है. सोचिये, अगर सौदे में 'बिका हुआ माल वापस नहीं होगा' की शर्त होती तो?
बड़ी होशियार मुर्गियाँ हैं आजकल की। सच की भी कीमत है और सपनों की भी।
ReplyDeletesukhad ahsaas, zaroor aap kahin chhuttiyan manaane gaye the.
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