Monday, October 17, 2011

उनकी अर्थव्यवस्था को 'सन्डे' अलग करता है.

एक फ़्लैट में आठ लोग एक साथ रहते थे. वे सब समान आय वाले,समान उम्र वाले या समान स्वभाव वाले नहीं थे, किन्तु महानगर में अकेले रह कर नौकरी करते थे, इसलिए सबकी सुविधा के लिए एक साथ रहते थे. 
उनमें से एक की आय ५० हज़ार, दो की ३०-३० हज़ार, दो की २५-२५ हज़ार,एक की २० हज़ार और शेष दो की १५-१५ हज़ार थी. 
यदि हम प्रति-व्यक्ति आय की बात करें तो वह भी सभी के मामले में अलग-अलग थी, क्योंकि उनके परिवारों के सदस्यों की संख्या भी अलग-अलग थी, जिन्हें वे अपनी आमदनी में से एक बड़ा भाग बचा कर हर महीने भेजते थे. उनके परिवारों का आर्थिक स्तर,सामाजिक स्तर और रहन-सहन भी अलग-अलग था. 
उनके बीच कॉमन केवल यही एक बात थी कि वे एक ही मकान में एक साथ रहते थे. सप्ताह के छह दिन उनके बीच किसी भी तरह का मतभेद, विवाद या अलगाव नहीं दिखाई देता था क्योंकि वे सुबह ही अपने-अपने काम के लिए निकल जाते थे, और रात को घर लौट कर एक सा बना हुआ खाना 'शेयर' करके आराम से सो जाते थे. ऐसा ही सुबह के नाश्ते के समय होता कि जो भी बना हो, वे उसे एक से चाव से खाकर चले जाते थे. 
केवल सन्डे के दिन स्थिति ज़रा अलग होती. उस दिन सभी की छुट्टी रहती थी. सुबह का नाश्ता वे अपनी-अपनी पसंद से लेते थे. लंच के समय भी -क्या खाया जाय, कहाँ खाया जाय, यह आसानी से तय नहीं हो पाता था, क्योंकि इस पर सब अपनी अलग राय रखते. कोई किफ़ायत से खाना चाहता, कोई बढ़िया खाने की इच्छा रखता. जब वे मनोरंजन के लिए जाते, तब भी वे सभी एकमत नहीं हो पाते. कोई मुफ्त का दिल-बहलाव चाहता तो कोई मनोरंजन पर भी तबीयत से खर्च करना चाहता. जब शॉपिंग की बात होती तब भी सबकी पसंद अलग-अलग बाज़ार या भिन्न -भिन्न दुकानें होती. 
रविवार को उनका व्यवहार देख कर यह अनुमान लगाना भी मुश्किल था कि ये सब छह दिन एक साथ कैसे रहते हैं? उनके फ़्लैट-मालिक को भी यह देख कर हैरत होती कि किराया चुकाने की इच्छा भी उनमें अलग-अलग है. कोई बिना मांगे दे जाता है, किसी से कई बार कहना पड़ता है. 
अमेरिका, जर्मनी, इंग्लैण्ड, फ़्रांस, चीन, जापान, भारत, अरब, सिंगापूर, मंगोलिया, पेरू, लेबनान या टर्की की इकोनोमी के सामाजिक-आर्थिक- राजनैतिक प्रभाव सामान्य दिनों में आसानी से नहीं आंके जा पाते.     

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति, आभार .

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  2. इस दृष्टिकोण से तो हम कभी सोच ही नहीं पाये।

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  3. kisi bhi bindu par logon ki alag-alag ray isiliye banti hai ki har koi har kisi drashtikon se nahin sochta. par yahi vividhta kisi baat ke anyany pahloo ujagar bhi karti hai. ho sakta hai ki jis drashtikon se aapne socha ho, us se koi aur n soch paye. dhanywad.

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