पिछले दिनों धूम-धाम से दशहरा मनाया गया. शहरों में उत्सव-धर्मिता कुछ तेज़ी से बढ़ती जा रही है.शायद इसका एक कारण यह भी है, कि रोजाना की भाग-दौड़ में सब इतने व्यस्त हो जाते हैं कि त्यौहारों को जोश-जुनून से मनाने का मन करने लगता है.
इसी तरह के एक छोटे से रावण-दहन कार्यक्रम में एक ओर रावण का पुतला तैयार था, दूसरी ओर श्रृंगार किये राम खड़े थे.राम हाथ में तीर-कमान लिए हुए थे.
एक छोटे बच्चे के साथ आई माँ बच्चे को सब समझाती जा रही थी, कि अब देखना कैसे ये रावण को मारेंगे.बच्चा कौतुहल से देख रहा था. तभी बच्चे ने स्वाभाविक भोलेपन से पूछा- ये इनको मारेंगे कि ये इनको मारेंगे? कह कर बच्चे ने दोनों ही ओर अंगुली का इशारा किया.
तभी एक बुज़ुर्ग का थका सा स्वर सुनाई दिया- बेटा, ये कन्फ्यूज़न तो दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है.
तभी रावण के पुतले से लपटों के साथ तेज़ आवाजें आने लगीं और बच्चा ताली बजाता हुआ अपना सवाल भूल बैठा. शायद आस-पास खड़े 'बड़े' सवाल को जल्दी नहीं भूले होंगे.
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