मैं ठीक कह रहा हूँ. इस मामले में ऐसा ही हुआ.
मैं प्राइमरी स्कूल में पढ़ता था. मुझे चित्र बनाने का शौक था.मेरी क्लास में एक लड़की थी, जिसे चित्र बनाने का शौक होना तो दूर, चित्र बनाने से ही सख्त चिढ़ थी.वह अपनी चिढ़ को व्यक्त भी अजीब तरीके से करती थी. पेन या पेन्सिल उठाती, और उससे बने हुए चित्रों पर आड़ी-तिरछी लकीरें बना कर उसे बिगाड़ देती थी.
मैंने एक बार गुलाब के फूल के भीतर पंडित जवाहर लाल नेहरु का चित्र बनाया. मैं उसे बाल-दिवस पर लगने वाली प्रदर्शनी में रखना चाहता था. उस लड़की ने मेरी अनुपस्थिति में पेन्सिल से नेहरुजी के चेहरे पर छोटी सी दाढ़ी बनादी. साथ ही आँखों पर भी गोल-गोल चश्मा बना दिया.
मैंने उस चित्र को उठा कर रख दिया, और प्रदर्शनी के लिए दूसरा चित्र बनाया, क्योंकि मैं अपने चित्रों में कभी भी रबर का प्रयोग नहीं करता था.
संयोग से अगले साल हमारे स्कूल में मुख्य-अतिथि के रूप में तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ.जाकिर हुसैन आये. जब आने से पहले मैंने अखबार में उनकी फोटो देखी तो मेरे दिमाग में वही नेहरूजी वाली तस्वीर कौंध गई, जिसे लड़की ने बिगाड़ दिया था. मैंने सोचा कि यदि उस तस्वीर में चश्मे का थोड़ा आकार बदल कर उसे काला चश्मा बनाया जाये तो एक नया सफल प्रयोग हो सकता है.
मेरी बनाई हुई डॉ. जाकिर हुसैन की तस्वीर प्रदर्शनी में लगी, और उसे देख कर डॉ. जाकिर हुसैन ने मुझे गोद में उठाया.
अब मैं मजबूर होकर इस उपलब्धि का श्रेय उस शरारती लड़की को ही देता हूँ. वह नन्ही उत्पातिनी अब कनाडा में रह कर अपना एक होटल चलाती है.पिछले दिनों नायग्रा फाल्स से कनाडा की रंगीन इमारतों को देखते हुए यह ख्याल मुझे आया था कि इतने सुन्दर शहर में सुन्दरता की दुश्मन वो लड़की कैसे क्या कर रही होगी?
:)
ReplyDeletemaine aaj subah hi akhbaar men padha tha ki anna hazare ne maun rakh liya hai aur kaha hai ki maun ki bhi zabaan hoti hai, sarkaar sab samajh legi.
ReplyDeleteऐसी ही गल्तियों से कई बार अच्छे कामों की प्रेरणा मिलती है।
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