आज दीपावली के अवसर पर सब की तरह मीडिया भी बहुत खुश है. एक बड़े नगर के अखबारों ने लिखा कि पिछले दो दिन में नगर में अरबों रुपये का इतना कारोबार हुआ कि शहर सोने का हो गया.
चलिए, मान लेते हैं कि शहर में १०० लोग रहते हैं. सब किसी न किसी तरह जीवन यापन करते हैं. आज त्यौहार था, सब हर्षित थे, सब उल्लसित थे, सब प्रमुदित थे.
आज सबने नए कपड़े पहने,दर्जियों और कपड़ा विक्रेताओं की चांदी हो गई.आज सबने पकवान खाए, हलवाइयों और मिठाई विक्रेताओं की जेब भर गई. सबने आतिशबाजी का लुत्फ़ उठाया, पटाखे बेचने और बनाने वालों की जम कर कमाई हुई. सबने छुट्टियों का आनंद उठाया, अफसरों-कर्मचारियों की जेब में बिना काम किये पैसा आया. आज सबने रौशनी और सजावट की, सजावट वालों की जेब में खूब पैसा आया. आज सब एक-दूसरे से मिलने गए. वाहन मालिकों और पेट्रोल विक्रेताओं को खूब मुनाफा हुआ.सबने साफ-सफाई करवाई. सफाई कर्मियों और स्वच्छता का सामान बेचने वालों को पैसा मिला.
"सब" को पैसा, मुनाफा, माल मिला.
किसने दिया?
सबने.
सब कौन?
अरे वही-दर्जी, कपड़ा विक्रेता, हलवाई, मिठाई विक्रेता, पटाखा निर्माता और विक्रेता, अफसर और कर्मचारी, बिजली वाले-सजावट वाले, वाहन मालिक और पेट्रोल विक्रेता, सफाई वाले आदि-आदि
इन्होंने दिया कि इन्हें मिला?
इन्हें एक चीज़ का मिला और इन्होंने दस चीज़ों का दिया.
यानि कुल मिला कर "लक्ष्मीजी की चहलकदमी" इस जेब से उस जेब तक.
तो शहर सोने का कैसे हुआ?
'मिस प्रिंट'...शहर सोने का नहीं हुआ, बल्कि दीवाली मना कर सोने को हुआ.
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