आजकल सड़क पर इतना ट्रेफिक होता है कि आप कितने भी युवा हों, तेज़ चल ही नहीं सकते.आपकी गाड़ी कितनी भी नई हो, कितने भी शानदार मेक की हो,कितनी भी पावरफुल हो, आपको सड़क पर घिसट-घिसट कर ही चलना होगा. मंथर-गति से चलने के अपने नुकसान हैं, तो कुछ फायदे भी हैं.सबसे बड़ा फायदा तो यही है कि सड़क पर क्या हो रहा है, यह आप भली-भाँति देख पाते हैं.यह बात अलग है कि कुछ नहीं होता. क्योंकि होने के लिए तो नगर-परिषद्, ठेकेदारों, इंजीनियरों, नेताओं आदि का ज़मीर जागना ज़रूरी होता है.
खैर, आज हम किसी नाकारापन की चर्चा नहीं करेंगे. क्योंकि आज सुबह-सुबह हमने सड़क पर कुछ होता देखा. सड़क के बीचों-बीच एक बड़ा चौराहा था,जिस पर अच्छी-खासी हलचल थी. किनारे पर कुछ कौवे,चिड़िया और कबूतर चहकते हुए ख़ुशी से फूले नहीं समा रहे थे, क्योंकि उन्होंने साल-भर तक बीट के रूप में जो भी मल त्याग किया था, उसे रगड़-रगड़ कर धोया जा रहा था. नज़दीक ही फायर-ब्रिगेड की गाड़ियाँ खड़ी थीं,जिनसे सड़क के चेहरे से मैल की परत उतारी जा रही थी.चौराहे के बगीचे से सूखे खर-पतवार और गन्दगी बीन कर हटाई जा रही थी. लोगों ने जूठे कागजों के जो अम्बार लगा दिए थे, उन्हें हटा कर कचरा-पात्रों में डाला जा रहा था. आस-पास की मंडियों से फूल-मालाएं इकट्ठी करके जमा की जा रही थी. एक ओर से कुछ राष्ट्रीय-गीत बजने की आवाजें आ रही थीं.
दरअसल चौराहे पर एक राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतर-राष्ट्रीय महा-पुरुष की आदम-कद प्रतिमा लगी थी.
क्योंकि आज एक अक्तूबर था, महीने का पहला दिन, दफ्तर पहुँचने की हड़बड़ी में इससे ज्यादा कुछ देखा नहीं जा सका. कल की आने वाली तारीख को याद करते-करते मुझे यह अच्छा लगा, कि यह देश चाहे सांस लेना भूल जाये, शासन चलाना भूल जाये, भ्रष्टाचार में आकंठ डूब जाये, पर "गाँधी" नाम को चमकाए रखना नहीं भूलेगा.
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