Saturday, October 29, 2011

अरी ओ शोख कलियो, मुस्करा देना वो जब आये.

उसके आने की आहट आ रही है.सबा से ये कहदो कि कलियाँ बिछाए, वो देखो वो जाने बहार आ रहा है. आएगा... आएगा... आएगा... आएगा आने वाला, आएगा. आइये आपका, था हमें इंतज़ार, आना था, आ गए, कैसे नहीं आते सरकार?आ जा जाने जाँ.
आगमन पर अगवानी की परंपरा बहुत पुरानी है.जब कोई आता है तो एक अजीब सी आशा उग जाती है. ऐसा लगता है कि जैसे अब कोई आ रहा है. अब तक जो थे, सब पुराने पड़ जाते हैं.जो थे, वो तो थे ही, उनका क्या? लेकिन जो अब आ रहा है, न जाने कितनी उम्मीदें लाये? 
एक बार उदयपुर  के महाराणा के महल में एक बड़ा समारोह हो रहा था. "मेवाड़ फाउंडेशन"के पुरस्कार बांटने का महोत्सव था. महल के भव्य और शानदार सज्जित दालान में हम सब बैठे थे. तभी अचानक जोर से बैंड बजने की आवाज़ आने लगी. मेरे साथ बैठी मेरी भतीजी मुझसे बोली- ये बैंड क्यों बज रहा है? तभी दिखाई दिया कि महाराज साहब अपने महल से निकल कर समारोह में आ रहे हैं. वह नन्ही बच्ची तुरंत बोली- ये अपने घर से निकलने में ही बैंड क्यों बजवा रहे हैं? इस बात का किसी के पास कोई जवाब नहीं था, इसलिए सब चुपचाप उन्हें आते देखने लगे. वे आ रहे थे. 
कहने का तात्पर्य यह है कि किसी का आना बड़ा ख़ास होता है, चाहे वह कितना ही आम हो. 
आने वाला तो अतिथि होता है, चाहे आम हो या ख़ास. 
वो कल आएगा. वो भारत में आएगा. भारत के उत्तर प्रदेश में. दुनियां के सात अरबवें बच्चे का स्वागत नहीं करेंगे?   

3 comments:

  1. इस सुन्दर पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें.

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  2. bahut gahan bhaav liye hue hai yeh post.

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  3. aap donon ka dhanywad, is baat men gahan bhaav vahi aankhen talaash sakti hain, jo duniyan men aane wale har insaan se sarokar rakhen.

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