एक बार शहनशाह अकबर किसी से किसी बात पर खुश हो गए. खुश होने पर उन्होंने सामने वाले को मुंह माँगा इनाम देने का ऐलान कर दिया.सामने वाला भी कोई संत-फ़कीर था, बोला- मैं इनाम-इकराम का क्या करूंगा, मुझे तो जहाँपनाह की ओर से पेट भरने को थोड़ा चावल मिल जाये. अकबर ने कहा इसे सेर-दो सेर चावल देदो. फ़कीर फिर बोल पड़ा- हुज़ूर, इतना बेहिसाब अन्न लेकर क्या करूंगा, मुझे तो गिनती के दाने मिल जाएँ. बादशाह उस समय बीरबल के साथ शतरंज खेलने में मशगूल थे, बोले- मुंह से बोलो तो सही, कितनी गिनती आती है तुम्हें?फकीर ने कहा- ज्यादा लालच नहीं है जहाँपनाह, एक दाना अपनी शतरंज के पहले खाने में रख दीजिये. फिर अगले खाने में दो, उससे अगले में चार ... बस इसी तरह दुगने करते जाइये. हुज़ूर की शतरंज पर कुल जितने दाने आ जायेंगे, ख़ाकसार उतने पर ही गुज़र कर लेगा.
बादशाह को ऐसी गिनती फ़िज़ूल अपने खेल में दखल जैसी लगी. फिर भी बात ज़बान की थी, गिनकर चावल देने का हुक्म दे दिया.
पहले खाने में एक, दूसरे में दो, तीसरे में चार, चौथे में आठ, पांचवें में सोलह, छठे में बत्तीस, सातवें में चौंसठ, आठवें में एक सौ अट्ठाईस, नवें में दो सौ छप्पन, दसवें में पांच सौ बारह,ग्यारहवें में एक हज़ार चौबीस, बारहवें में दो हज़ार अड़तालीस,तेरहवें में चार हज़ार छियानवे, चौदहवें में आठ हज़ार एक सौ बानवे, पन्द्रहवें में सोलह हज़ार तीन सौ चौरासी...
माफ़ कीजिये, क्या आप मेरी हेल्प करेंगे? बस इसी तरह चौंसठ खानों तक गिन कर सभी खानों के चावलों की संख्या को जोड़ दीजियेगा. इतने चावल चाहिए फ़कीर को.
हाँ, एक बात और. हमारे प्रधान-मंत्री मनमोहन सिंह जी ने कहा है की जल्दी ही मंहगाई घटने वाली है. इसलिए कुल टोटल में बोनस के चार चावल और घटा दीजिये. महंगाई इतनी तो घटेगी ही न ?
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