सिसकती थी मासूम पेड़ों की फुनगी 
झमेलों में उसका जहाँ खो गया था 
जो रहता था डाली पे नन्हा सा पंछी 
न जाने सुबह से कहाँ खो गया था 
गले मिलके बादल हटा सामने से 
तभी झाँक के नीचे सूरज ने देखा 
कहा उसने धीरे से अपनी किरण से 
ज़रा देखो जाके, ये क्या माज़रा है 
चली आई धरती पे सूरज की रानी 
फुनगी के सर पे ज़रा हाथ फेरा 
पूछा, कि डाली से उड़ कर गया जो 
बता तो सही, कौन लगता था तेरा 
जो आँखों में था डबडबाता सा आंसू 
उसे पोंछ कर बोली पेड़ों की फुनगी 
वो मेरा नहीं था कभी कुछ भी, लेकिन 
था डाली पे रहता सदा चहचहाता 
कभी नाचता था, कभी खुल के गाता
ये जिंदा है मौसम वही था बताता  
वो जबसे गया है, ये सूना है जंगल 
कहीं हो गया हो न उसका अमंगल 
कहा तब किरण ने- यूं रोते नहीं हैं 
चले जाते हैं जो , वो खोते नहीं हैं 
तुझे फिर मिलेगा कोई पंछी आके 
उसे फिर मिलेगी कोई डाल जाके.
 
 
GOVIL JI,
ReplyDeleteइस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें .
dhanywad. aapko main zaroor padhoonga,
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