जब हम किसी के साथ रहते हैं, तो हमें एक विचित्र अनुभव से गुजरना पड़ता है। किसी की कोई छोटी सी क्रिया या बात हमें मन ही मन उससे विमुख कर देती है। इसी तरह किसी की कोई बात हमें मन ही मन अच्छी लग कर उसके और करीब कर देती है। यह उतार-चढ़ाव और रिश्तों में तो हम निभा ले जाते हैं, पर अन्तरंग संबंधों, जैसे प्रेमी-प्रेमिका या पति-पत्नी, के मामलों में कभी उलझन बढ़ जाती है। हम इसे समझ भी नहीं पाते कि तब तक देर हो जाती है। हम एक-दूसरे के मन से उतर जाते हैं।
-मैंने पढ़ा था कि युवती के केला खाने के तरीके से उसका बॉय-फ्रेंड चिढ़ गया।
-प्रेमिका तोहफे में तरह-तरह के कीमती रुमाल देकर थक गई, पर प्रेमी ने हर बार नाक अपनी अँगुलियों की मदद से सड़क पर ही सिनकी।नतीजा यह हुआ कि भूखी होने पर भी प्रेमिका बेमन से आधा-अधूरा खाकर लौटी।
-'बड' से कान कुरेद कर पति उसी बड को तकिये के नीचे रख, सोता रहा। नतीजतन पत्नी जागती रही।
-प्यासे पति को पानी देती पत्नी का अंगूठा पानी के ग्लास में था, पति की प्यास कभी नहीं बुझी।
यह सूची अंतहीन है।
लेकिन इस दुनिया में अंतहीन कुछ नहीं है। यदि एक छोटा सा प्रयोग करें तो आप इन छोटी-छोटी आदतों के काले प्रभाव से बच सकते हैं।
सप्ताह में केवल एक दिन "रिश्ते का उपवास" रखिये। उस दिन दोनों अलग-अलग जगह, या अलग समय पर खाइए। अलग कमरे में सोइए। अजनबी की तरह व्यवहार कीजिये। पति अपने किसी ऐसे मित्र को बुलाले, जिसे पत्नी न जानती हो, ऐसा ही पत्नी भी करे। एक दूसरे का आपस में परिचय भी न कराएं।
लेकिन क्या सप्ताह में एक दिन ऐसा करने से किसी की आदतें बदल जाएँगी?
नहीं, बदलेंगी नहीं। किन्तु एक वैज्ञानिक क्रिया अपना काम करेगी। जिस समय आप अपने 'प्रिय' के साथ तन या मन से नहीं होंगे, उस समय आपका मस्तिष्क एक मैच खेलेगा। वह प्रिय के अभाव में होने वाले अदृश्य मानसिक आकर्षण को उस विकर्षण से तौलेगा, जो उसकी किसी अवांछित आदत से आप में जन्म लेता है। यह आकर्षण यदि विकर्षण से परिमाण में अधिक है, तो यह विकर्षण को नष्ट कर देगा।और यदि यह विकर्षण से कम भी है, तो यह अपने बराबर विकर्षण के हिस्से को कम कर देगा। ऐसे में आपके लिए अवांछित आदत "सहनीय" होने की सम्भावना बढ़ जायेगी।
-मैंने पढ़ा था कि युवती के केला खाने के तरीके से उसका बॉय-फ्रेंड चिढ़ गया।
-प्रेमिका तोहफे में तरह-तरह के कीमती रुमाल देकर थक गई, पर प्रेमी ने हर बार नाक अपनी अँगुलियों की मदद से सड़क पर ही सिनकी।नतीजा यह हुआ कि भूखी होने पर भी प्रेमिका बेमन से आधा-अधूरा खाकर लौटी।
-'बड' से कान कुरेद कर पति उसी बड को तकिये के नीचे रख, सोता रहा। नतीजतन पत्नी जागती रही।
-प्यासे पति को पानी देती पत्नी का अंगूठा पानी के ग्लास में था, पति की प्यास कभी नहीं बुझी।
यह सूची अंतहीन है।
लेकिन इस दुनिया में अंतहीन कुछ नहीं है। यदि एक छोटा सा प्रयोग करें तो आप इन छोटी-छोटी आदतों के काले प्रभाव से बच सकते हैं।
सप्ताह में केवल एक दिन "रिश्ते का उपवास" रखिये। उस दिन दोनों अलग-अलग जगह, या अलग समय पर खाइए। अलग कमरे में सोइए। अजनबी की तरह व्यवहार कीजिये। पति अपने किसी ऐसे मित्र को बुलाले, जिसे पत्नी न जानती हो, ऐसा ही पत्नी भी करे। एक दूसरे का आपस में परिचय भी न कराएं।
लेकिन क्या सप्ताह में एक दिन ऐसा करने से किसी की आदतें बदल जाएँगी?
नहीं, बदलेंगी नहीं। किन्तु एक वैज्ञानिक क्रिया अपना काम करेगी। जिस समय आप अपने 'प्रिय' के साथ तन या मन से नहीं होंगे, उस समय आपका मस्तिष्क एक मैच खेलेगा। वह प्रिय के अभाव में होने वाले अदृश्य मानसिक आकर्षण को उस विकर्षण से तौलेगा, जो उसकी किसी अवांछित आदत से आप में जन्म लेता है। यह आकर्षण यदि विकर्षण से परिमाण में अधिक है, तो यह विकर्षण को नष्ट कर देगा।और यदि यह विकर्षण से कम भी है, तो यह अपने बराबर विकर्षण के हिस्से को कम कर देगा। ऐसे में आपके लिए अवांछित आदत "सहनीय" होने की सम्भावना बढ़ जायेगी।
अनूठा प्रयोग, पर लगता है प्रभावी होगा
ReplyDeleteबढिया सोच
ReplyDeleteAap donon ka Dhanyawaad, yadi aisa kuchh karen, ya kisi ko sujhayen, to bataaiyega zaroor!
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