एक युवक की तबियत खराब हो गई। वह गुमसुम रहने लगा। न उसका मन घूमने-फिरने में लगता, न खाने-बोलने में। इस उम्र में ऐसा बर्ताव देख कर घरवाले चिंतित हुए। उसे डाक्टर के पास भेजा गया। डाक्टर के बहुत पूछने पर उसने बताया- मुझे दुनिया में किसी पर भी विश्वास नहीं होता। किसी भी आदमी को देख कर लगता है, यह भ्रष्टाचारी है, देश को लूट कर खा रहा है। किसी भी औरत को देख कर लगता है, यह दुनिया के अनुशासन को तोड़ने के लिए ही बनी है, इसे कहीं भी, कैसे भी, बस खुली हवा और स्वाधीन जिंदगी चाहिए।
डाक्टर ने कहा- लेकिन इसमें तुम्हे क्या परेशानी है? तुमने क्यों खाना-पीना छोड़ रखा है?
युवक कुछ न बोला।उसके साथ आये परिजन आपस में बातें करने लगे- चलो, किसी दूसरे डाक्टर के पास ले चलते हैं। डाक्टर एकाएक सकपका गया, बोला- नहीं-नहीं, ठहरो- ये लो दवा की पर्ची,ये गोलियां एक-एक घंटे बाद खाना, पांच सौ रूपये!
परिजन संतुष्ट थे। इलाज हो गया था।
डाक्टर ने कहा- लेकिन इसमें तुम्हे क्या परेशानी है? तुमने क्यों खाना-पीना छोड़ रखा है?
युवक कुछ न बोला।उसके साथ आये परिजन आपस में बातें करने लगे- चलो, किसी दूसरे डाक्टर के पास ले चलते हैं। डाक्टर एकाएक सकपका गया, बोला- नहीं-नहीं, ठहरो- ये लो दवा की पर्ची,ये गोलियां एक-एक घंटे बाद खाना, पांच सौ रूपये!
परिजन संतुष्ट थे। इलाज हो गया था।
No comments:
Post a Comment