Friday, October 12, 2012

रवींद्र नाथ टैगोर की तरह उसने भी सीखना नहीं छोड़ा

   कई साल पहले मुझे एक बाल-श्रमिक विद्यालय में जाने का अवसर मिला। एक छोटी सी लड़की वहां थी, जिसने अपना परिचय देते समय, पहले मुझे "गुड मॉर्निंग" कहा था। बाकी सारे बच्चों ने नमस्कार कहा था। इसी से वह मेरे ध्यान में बनी रह गई। मुझे बताया गया कि  वह छः साल की उम्र में एक चूड़ी  के कारखाने में काम कर रही थी, जहाँ छापा पड़ने के बाद उसे इस विद्यालय में पढ़ने भेजा गया।
   कुछ समय बाद पता चला कि  उसके माता-पिता वहां से भी उसे ले गए और उसे घर के कामों में हाथ बटाने के लिए घर और खेत में ही रहना पड़ा।
   वर्षों के बाद एक विश्व-विद्यालय के लॉन से गुजरते हुए मैं चौंका, जब मैंने बगीचे में काम करती महिलाओं के बीच से  एक प्रौढ़ सा स्वर सुना- 'सर, गुड मोर्निंग' !
   मैं चौंका, और सब कुछ याद आ जाने पर मेरी वह "मॉर्निंग" बिलकुल 'गुड' नहीं रही। मैं सोचता रहा, कि अवसर देने में ईश्वर हमेशा अविश्वसनीय रहा है।
   कुछ दिनों के बाद एक शाम वहां से गुजरने के दौरान मैंने उसी 'महिला' को सड़क पर देखा। मैं तो एकाएक यह तय नहीं कर पाया कि  उस से क्या बोलूँ, लेकिन वह तत्परता से बोल पड़ी- 'सर, शाम की गुड मॉर्निंग'...मैं, न तो उसे कुछ कह सका, और न ही ईश्वर को अविश्वसनीय कह सका  ...आखिर वह भी तो प्राइमरी स्कूल से अब यूनिवर्सिटी में आ गई थी।

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