Monday, October 15, 2012

मीडिया क्लब ऑफ़ इंडिया

आज एक बड़ी समस्या तेज़ी से उभर कर आई है।यह समस्या वैसे नई नहीं है, क्योंकि यह पहले भी थी, किन्तु पहले  केवल विज्ञापन के क्षेत्र में थी, अब यह ख़बरों के क्षेत्र में भी आ गई। यह समस्या ऐसी है कि  इस से हमें कोई नुक्सान नहीं होगा, केवल हमारे ज़मीर को नुक्सान होगा। अब कोई भी यह अंदाज़ लगा सकता है कि  ज़मीर मैला हो जाने के बाद इंसान में क्या बाकी रह जाता है। लेकिन अब लोग ज़मीर जैसी चीज़ को ज्यादा भाव नहीं देते।
समस्या यह है कि  अखबारों के पन्नों पर मछलियाँ तैरने लगी हैं। जब कोई समस्या सामने हो तो पहेलियाँ नहीं बुझानी चाहिए, इसलिए मैं सीधी  बात पर आता हूँ। पहले "विज्ञापन" विज्ञापनों को खाया करते थे, अब ख़बरें भी ख़बरों को खाने लगी हैं। बड़ी मछली छोटी मछली को आराम से खा रही है। अर्थात यदि कोई व्यक्ति या एजेंसी यह चाहे कि  आपकी बात न सुनी जाय तो वह उस जगह को खरीद रही है, जिस से आप अपनी बात कहने वाले थे। इस खरीद-फरोख्त में मीडिया के अंदरूनी लोग भी शामिल हैं। उनकी सहमति  के बिना शायद यह संभव नहीं है। इस बात पर दो राय हो सकती हैं, कि  कौन अपनी मर्ज़ी से शामिल है और कौन मजबूरी में। ऐसे में "मीडिया क्लब ऑफ़ इंडिया"को एक ज़िम्मेदार मंच की भूमिका में आना होगा।

No comments:

Post a Comment

शोध

आपको क्या लगता है? शोध शुरू करके उसे लगातार झटपट पूरी कर देने पर नतीजे ज़्यादा प्रामाणिक आते हैं या फिर उसे रुक- रुक कर बरसों तक चलाने पर ही...

Lokpriy ...