Wednesday, October 31, 2012

अच्छे मार्क्स दिलाएगा 'कम्पलसरी क्वेश्चन' अमेरिका में

अमेरिका ने एक बहुत बड़ा इम्तहान दे दिया। 108 वर्षों के इतिहास में ऐसा जलज़ला पहली बार आया। जिन पञ्च-तत्व से मिल कर इंसान बना है, वही पांच-तत्व इंसान को बर्बाद करने भी चले आये। आग-पानी की दोस्ती इस तरह पहले कभी नहीं देखी गई। ऊपर से मूसलाधार पानी बरस रहा हो और नीचे जगह-जगह आग लग जाए, ऐसा मंज़र पहले कभी नहीं देखा गया। ऐसा केवल रोमांटिक शायरी की दुनिया में सुना गया है, हकीकत में नहीं। पत्रकार भी यदि मौके पर खुद न मौजूद हों, और शीशे के कक्षों में बैठ कर समाचार लिख रहे हों, तो ग़मगीन ख़बरों की ऐसी शैली भी हो सकती है जैसी एक भारतीय पत्रकार ने दिखाई। आप लिखते हैं- तेज़ हवा से सागर तट के पेड़ माइकल जैक्सन की भांति नाच रहे थे, किनारे हेमा मालिनी की तरह नृत्य कर रहे थे। क्रूर और दायित्वहीन पत्रकारिता की ऐसी मिसाल उन कुछ और देशों में भी देखी गई, जिनके लिए अमेरिका केवल ईर्ष्या-महाद्वीप का एक मुल्क रहा है। वे, जो कभी अपनी कमजोरी नहीं देख पाते, उन्हें केवल दूसरे की मजबूती पेट का दर्द देती है। संकट की घड़ी भी उनके लिए उल्लास का कार्निवल हो सकती है।
वहीँ दूसरी तरफ अमेरिका से "राना" के कुछ सदस्यों ने लिखा, कि भारतीय अधिकारियों को  यहाँ आकर देखना चाहिए, और सीखना चाहिए कि  आपदा-प्रबंधन किसे कहते हैं।कागज़ पर कलम के सहारे थिरकने वाले पत्रकार महाशय से ऐसे अधिकारी ज्यादा राष्ट्र-भक्त साबित हुए जो संकट में घिरे देश से भी कुछ सीख लेने की सीख अपनों को दे रहे थे।
यह भयानक तूफ़ान दुनिया के किसी भी कौने में 'आखिरी' तूफ़ान सिद्ध हो। यह जिन पर से गुज़रा उन्हें यह  तन-मन-धन से और सक्षम बना कर जाये - ऐसी शुभकामनाएं !
अमेरिकी प्रशासन के सामने अनिवार्य प्रश्न की तरह उपस्थित हुआ यह प्रश्न उसे आगामी पांच दिनों में आने वाले दूसरे इम्तहान में निश्चय ही अच्छे अंक दिलाएगा ...जब वर्तमान राष्ट्रपति गर्व से कह सकेंगे कि  "हम लाये हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के ..."

2 comments:

  1. @भारतीय अधिकारियों को यहाँ आकर देखना चाहिए, और सीखना चाहिए कि आपदा-प्रबंधन किसे कहते हैं।

    - सच कहा, जब हमारे यहाँ सेवा का जज्बा था तब हम भी संसार के शिरोमणि थे।

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