कई बार मीडिया में बहुत बड़ी-बड़ी ख़बरें चिल्ला-चिल्ला कर बताई जाती हैं, लेकिन फिर भी देखने वाले रिमोट हाथ में लेकर चैनल बदल लेते हैं। और कभी ऐसा भी होता है कि कोई नन्ही सी खबर बहुत दुबका-छिपा कर, शर्माते-लजाते हुए बेचारा अखबार किसी कौने में चुपचाप चिपकाता है, और देखते-देखते वह खबर सबके सर चढ़ कर बोलने लगती है।
आज ऐसा ही हुआ। अखबार ने अंतिम पृष्ठ पर नीचे कौने में, बेहद झेंपते हुए एक खबर लगाई, और एक सौ बीस करोड़ जोड़ी कान खड़े हो गए।
खबर यह थी कि हमारे देश की एक नामी-गिरामी हस्ती के नाम की सिफारिश शान्ति के नोबल पुरस्कार के लिए की गई। दिल बाग़-बाग़ हो गया। जिस किसी का भी ध्यान इस महान आकांक्षा पर गया, वह वास्तव में प्रशंसनीय है। जिस देश में "घोटाले" रोज़ सूरज की तरह उगते हों, और सरकार का अरबों रुपया रोज़ चाँद की भाँति डूबता हो,वहां जनता का शांत बने रहना अपने आप इस बात का सबूत है कि कहीं न कहीं कोई शांति का मसीहा अवश्य है जो देश की ऑक्सीजन नली को मुट्ठी में भींचे घूम रहा है, वर्ना ये खामोशियाँ कोई यूँही नहीं होतीं।शुक्र है कि आज भी लोग देश को गौतम, गाँधी और नानक का देश स्वीकार तो करते हैं, जिसे शांति पुरस्कार से नवाज़ा जा सकता है ।
आज ऐसा ही हुआ। अखबार ने अंतिम पृष्ठ पर नीचे कौने में, बेहद झेंपते हुए एक खबर लगाई, और एक सौ बीस करोड़ जोड़ी कान खड़े हो गए।
खबर यह थी कि हमारे देश की एक नामी-गिरामी हस्ती के नाम की सिफारिश शान्ति के नोबल पुरस्कार के लिए की गई। दिल बाग़-बाग़ हो गया। जिस किसी का भी ध्यान इस महान आकांक्षा पर गया, वह वास्तव में प्रशंसनीय है। जिस देश में "घोटाले" रोज़ सूरज की तरह उगते हों, और सरकार का अरबों रुपया रोज़ चाँद की भाँति डूबता हो,वहां जनता का शांत बने रहना अपने आप इस बात का सबूत है कि कहीं न कहीं कोई शांति का मसीहा अवश्य है जो देश की ऑक्सीजन नली को मुट्ठी में भींचे घूम रहा है, वर्ना ये खामोशियाँ कोई यूँही नहीं होतीं।शुक्र है कि आज भी लोग देश को गौतम, गाँधी और नानक का देश स्वीकार तो करते हैं, जिसे शांति पुरस्कार से नवाज़ा जा सकता है ।
दिल भुलाने को ग़ालिब ख्याल अच्छा है .
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