भय और भक्ति एक साथ नहीं होती।
मैं उन दिनों न्यूयॉर्क में था। लेकिन तब तक अकेले वहां इधर-उधर घूमने का ज्यादा अनुभव नहीं था, क्योंकि हमेशा वहां रहने वाले बच्चों के साथ ही घूमना हुआ था। उस दिन भी दफ्तर जाते हुए वे मुझे कह गए कि उन्हें शायद आज वापस आने में थोड़ी देर हो जाए।
घर में कुछ मेहमान आये हुए थे, जिन्हें कुछ ही दिनों में वापस लौटना था।अतः वे अपने एक-एक दिन को शहर देखने में काम ले लेना चाहते थे। मेहमानों में कुछ महिलायें ही थीं, जिनमें एक वृद्ध महिला भी थीं। उन लोगों ने मुझसे कहा कि आज हम लोग टाइम-स्क्वायर देखने चलें।
इस प्रस्ताव पर मुझे थोड़ी घबराहट तो हुई कि सब शहर से अपरिचित लोग ऐसी भीड़-भाड़ वाली जगह पर कैसे पहुचेंगे, किन्तु एक तो उनका उत्साह, दूसरे मुझ पर उनका विश्वास, दोनों ही को बनाए रखने का सवाल था। मुझे भी स्वीकृति देनी पड़ी।
थोड़ी ही देर में, हम शहर से अजनबियों की मण्डली टाइम-स्क्वायर के लिए निकल पड़ी। हमें कुछ दूर चलने के बाद, सही ट्रेन चुन कर वहां पहुंचना था और वहां भी सही स्टेशन पहचान कर उतरना था। वे तीनों मेरे साथ होने के कारण पूरी तरह आश्वस्त थीं, वहीँ मैं उन तीनों के साथ होने के कारण भयंकर तनाव में था। हम भारत से गए थे, जहाँ महिलायें साथ होने पर किसी को भी तनाव से ही गुजरना होता है। हम यह नहीं जानते थे कि अमेरिका में इस तनाव की कोई अहमियत या ज़रुरत नहीं है।
वृद्ध महिला अत्यधिक सतर्क व चौकन्नी थीं।वह हर कदम मेरी ओर देखते हुए इस तरह बढ़ाती थीं, कि मानो ज़रा सी चूक होते ही हम सब हिंदी-फिल्मों के मेले में बिछुड़े हुए पात्रों की तरह हमेशा के लिए बिछुड़ जायेंगे। शायद वह बीच-बीच में कोई मंत्र भी बुदबुदाती थीं, यह मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूँ, क्योंकि मैं भी कभी-कभी ऐसा ही करता था। जबकि हम अच्छी तरह जानते थे कि जिन भगवानों के नाम हम जप रहे थे, वे यहाँ कभी नहीं आये थे।
जब स्टेशन से सीढियां चढ़ कर हम बाहर निकले, और सामने वास्तव में टाइम-स्क्वायर ही दिखाई दिया, तो उन महिला के चेहरे पर आने वाला सफलता का भाव किसी कोलंबस या वास्को-डिगामा के मनोभाव से कम नहीं था। उनकी क्या कहूं, खुद मैं भी तो चक्र-व्यूह से निकले अभिमन्यु की भांति चकित था।
मैं उन दिनों न्यूयॉर्क में था। लेकिन तब तक अकेले वहां इधर-उधर घूमने का ज्यादा अनुभव नहीं था, क्योंकि हमेशा वहां रहने वाले बच्चों के साथ ही घूमना हुआ था। उस दिन भी दफ्तर जाते हुए वे मुझे कह गए कि उन्हें शायद आज वापस आने में थोड़ी देर हो जाए।
घर में कुछ मेहमान आये हुए थे, जिन्हें कुछ ही दिनों में वापस लौटना था।अतः वे अपने एक-एक दिन को शहर देखने में काम ले लेना चाहते थे। मेहमानों में कुछ महिलायें ही थीं, जिनमें एक वृद्ध महिला भी थीं। उन लोगों ने मुझसे कहा कि आज हम लोग टाइम-स्क्वायर देखने चलें।
इस प्रस्ताव पर मुझे थोड़ी घबराहट तो हुई कि सब शहर से अपरिचित लोग ऐसी भीड़-भाड़ वाली जगह पर कैसे पहुचेंगे, किन्तु एक तो उनका उत्साह, दूसरे मुझ पर उनका विश्वास, दोनों ही को बनाए रखने का सवाल था। मुझे भी स्वीकृति देनी पड़ी।
थोड़ी ही देर में, हम शहर से अजनबियों की मण्डली टाइम-स्क्वायर के लिए निकल पड़ी। हमें कुछ दूर चलने के बाद, सही ट्रेन चुन कर वहां पहुंचना था और वहां भी सही स्टेशन पहचान कर उतरना था। वे तीनों मेरे साथ होने के कारण पूरी तरह आश्वस्त थीं, वहीँ मैं उन तीनों के साथ होने के कारण भयंकर तनाव में था। हम भारत से गए थे, जहाँ महिलायें साथ होने पर किसी को भी तनाव से ही गुजरना होता है। हम यह नहीं जानते थे कि अमेरिका में इस तनाव की कोई अहमियत या ज़रुरत नहीं है।
वृद्ध महिला अत्यधिक सतर्क व चौकन्नी थीं।वह हर कदम मेरी ओर देखते हुए इस तरह बढ़ाती थीं, कि मानो ज़रा सी चूक होते ही हम सब हिंदी-फिल्मों के मेले में बिछुड़े हुए पात्रों की तरह हमेशा के लिए बिछुड़ जायेंगे। शायद वह बीच-बीच में कोई मंत्र भी बुदबुदाती थीं, यह मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूँ, क्योंकि मैं भी कभी-कभी ऐसा ही करता था। जबकि हम अच्छी तरह जानते थे कि जिन भगवानों के नाम हम जप रहे थे, वे यहाँ कभी नहीं आये थे।
जब स्टेशन से सीढियां चढ़ कर हम बाहर निकले, और सामने वास्तव में टाइम-स्क्वायर ही दिखाई दिया, तो उन महिला के चेहरे पर आने वाला सफलता का भाव किसी कोलंबस या वास्को-डिगामा के मनोभाव से कम नहीं था। उनकी क्या कहूं, खुद मैं भी तो चक्र-व्यूह से निकले अभिमन्यु की भांति चकित था।
अच्छा अनुभव रहा...बधाई |
ReplyDelete@ जबकि हम अच्छी तरह जानते थे कि जिन भगवानों के नाम हम जप रहे थे, वे यहाँ कभी नहीं आये थे।
ReplyDelete:)
Aap sabhi ka Dhanyawad.
ReplyDelete