ये सचमुच अद्भुत था। अवर्णनीय, शानदार और अविश्वसनीय।
मैं बड़ी संख्या में युवाओं को संबोधित कर रहा था। मैं उन्हें बता रहा था कि अब राजनीति ,समाज और परिवारों में अब तक अच्छी माने जाने वाली नैतिक मान्यताओं का टूटना, और भ्रष्टाचार व घपले-घोटालों का इतना बोलबाला क्यों हो रहा है। मैं उन्हें प्रैक्टिकल बनने की सलाह दे रहा था, और कह रहा था कि अब आप लोग इन्हीं परिस्थितियों में जीने की आदत डालिए। मेरा कहना था कि जिस तरह किसी सूअर के बच्चे या कीड़े-मकोड़े कीचड़ और गंदगी में ही अठखेलियाँ करते हुए भी जिंदगी बसर कर लेते हैं, वैसे ही आप भी सोच लीजिये कि अब ये देश ऐसा ही रहेगा। भ्रष्टाचार, बेईमानी, घूसखोरी, चोरी, चारित्रिक पतन, नशाखोरी, मुनाफाखोरी, मिलावट, सिफारिश, शिक्षा की खरीद, डकैती आदि अब हमेशा हमारे साथ ही रहेंगे, क्योंकि हमारे बीच से इन्हें हटाने की सोचने तक वाले लोग भी मिटते जा रहे हैं। अब किसी भी सुधार की कोशिश करने वाले के मुंह पर कालिख पोती जाएगी, और अच्छा देखने, अच्छा बोलने, अच्छा सुनने और अच्छा सोचने वाले को जान का खतरा रहेगा। हमें धर्म-जाति , नस्ल आदि के नाम पर आपस में लड़वाया जाता रहेगा, और सोने की लंका बनाने में हम एक दूसरे के खून के प्यासे रहेंगे। हमारी गर्दन में ऐसे पेस-मेकर लगा दिए जायेंगे कि हम घिसटते हुए जाकर उन्हें वोट देते रहें।
तभी मैंने देखा कि थोड़ी सी हलचल हुई, और कुछ लोग मुझसे कहने लगे, सर, आप मन से नहीं बोल रहे। हमें कुछ नैतिक बातें बताइये। वे आपस में बातें कर रहे थे- "हमने इन्हें पहले भी सुना है, ये ऐसा नहीं कहते।"
मैं बड़ी संख्या में युवाओं को संबोधित कर रहा था। मैं उन्हें बता रहा था कि अब राजनीति ,समाज और परिवारों में अब तक अच्छी माने जाने वाली नैतिक मान्यताओं का टूटना, और भ्रष्टाचार व घपले-घोटालों का इतना बोलबाला क्यों हो रहा है। मैं उन्हें प्रैक्टिकल बनने की सलाह दे रहा था, और कह रहा था कि अब आप लोग इन्हीं परिस्थितियों में जीने की आदत डालिए। मेरा कहना था कि जिस तरह किसी सूअर के बच्चे या कीड़े-मकोड़े कीचड़ और गंदगी में ही अठखेलियाँ करते हुए भी जिंदगी बसर कर लेते हैं, वैसे ही आप भी सोच लीजिये कि अब ये देश ऐसा ही रहेगा। भ्रष्टाचार, बेईमानी, घूसखोरी, चोरी, चारित्रिक पतन, नशाखोरी, मुनाफाखोरी, मिलावट, सिफारिश, शिक्षा की खरीद, डकैती आदि अब हमेशा हमारे साथ ही रहेंगे, क्योंकि हमारे बीच से इन्हें हटाने की सोचने तक वाले लोग भी मिटते जा रहे हैं। अब किसी भी सुधार की कोशिश करने वाले के मुंह पर कालिख पोती जाएगी, और अच्छा देखने, अच्छा बोलने, अच्छा सुनने और अच्छा सोचने वाले को जान का खतरा रहेगा। हमें धर्म-जाति , नस्ल आदि के नाम पर आपस में लड़वाया जाता रहेगा, और सोने की लंका बनाने में हम एक दूसरे के खून के प्यासे रहेंगे। हमारी गर्दन में ऐसे पेस-मेकर लगा दिए जायेंगे कि हम घिसटते हुए जाकर उन्हें वोट देते रहें।
तभी मैंने देखा कि थोड़ी सी हलचल हुई, और कुछ लोग मुझसे कहने लगे, सर, आप मन से नहीं बोल रहे। हमें कुछ नैतिक बातें बताइये। वे आपस में बातें कर रहे थे- "हमने इन्हें पहले भी सुना है, ये ऐसा नहीं कहते।"
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