थोड़ा अजीब लगता है न अपने आप से अपना हाल पूछना, या फिर दूसरों से अपने बारे में पूछना। दरअसल हमारा मूल्यांकन दो तरह से होता है,एक हमारी जड़ों से, दूसरा हमारे आकाश से। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। हम विभीषण के बारे में सोचें। उसकी जड़ें उसे गद्दार कहेंगी। उसका आकाश उसे मनुष्यता का वाहक कहेगा।
इस सिद्धांत को भारत में यदि किसी ने समझा है तो हमारी राजनैतिक पार्टियों ने। वहां अब लगभग विभीषणों का सफाया हो चुका है। हाँ,जिस तरह शरीर की अपान वायु को निकालने के दो तरीके हैं- एक डकार द्वारा और दूसरा ...उसी तरह अब पार्टियाँ अपने विचार और टिप्पणियाँ जनता के सामने रखने के लिए दोनों तरीके काम में लेती हैं। पार्टियों के पास दो तरह के 'प्रवक्ता' होते हैं। जिसकी जितनी सत्ता, उसका प्रवक्ता उतना मुखर।
इस सिद्धांत को भारत में यदि किसी ने समझा है तो हमारी राजनैतिक पार्टियों ने। वहां अब लगभग विभीषणों का सफाया हो चुका है। हाँ,जिस तरह शरीर की अपान वायु को निकालने के दो तरीके हैं- एक डकार द्वारा और दूसरा ...उसी तरह अब पार्टियाँ अपने विचार और टिप्पणियाँ जनता के सामने रखने के लिए दोनों तरीके काम में लेती हैं। पार्टियों के पास दो तरह के 'प्रवक्ता' होते हैं। जिसकी जितनी सत्ता, उसका प्रवक्ता उतना मुखर।
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