Friday, October 5, 2012

उन्होंने कहा था

   एक बार हरिवंश राय बच्चन ने कहा था कि हर लिखने वाले को अपने रहते ही अपना साहित्य लेखन कुछ संकेतों के साथ दुनिया को सौंपना चाहिए। तात्पर्य यह, कि  आपने जिन लोगों को पढ़ा है, उनमें से किसकी दूरी आप अपने लेखन से सबसे कम मानते हैं। आपके प्रेरक, आदर्श, पसंदीदा लेखक वे तो सब अपनी जगह हैं ही, पर आप किसके खेत की फसल से अपनी फसल की जैसी  खुशबू उठती मानते हैं? यह किसी भी तरह 'नक़ल' या 'लेखन पर प्रभाव' जैसी कोई चीज़ नहीं है।
   ठीक इसी तरह हर लेखक को कुछ समय नए लेखकों को पढने के लिए भी निकालना चाहिए। और फिर नव-लेखन में भी आपके लिखे की सबसे छोटी या नाटी छाया आप कहाँ देख रहे हैं, यह आपको इंगित करना चाहिए। हो सकता है कि  आपको किसी भी  ठीहे पर ऐसा न मिले। ऐसे में आपको "निकटतम" खोजना चाहिए।
   बच्चन जी ने उनके घर पर हुई बातचीत में ही यह स्पष्ट किया था कि  लेखकों की एक सामूहिक मैराथन में हम सब को अपने नजदीकी इसी तरह तलाशने चाहिए। स्वयं उन्होंने खुद को उमर खैय्याम का अगला रिले-रेस धावक माना था। वे अपना अगला धावक किसे देख रहे हैं, यह सवाल अनुत्तरित ही रह गया था, क्योंकि तभी उनके पास शिवमंगल सिंह सुमन का फोन आ गया, और वे व्यस्त हो गए।
   उनकी यह अवधारणा मुझे अच्छी लगी, और मैं उस दिन से राही मासूम रजा को और चाव से पढने लगा। आज मैंने एक युवा रचनाकार त्रिपुरारि  कुमार शर्मा की कुछ रचनाएं पढ़ीं तो बच्चन जी की याद आ गई।

2 comments:

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