वह एक भव्य और शानदार रिहायशी बिल्डिंग थी। पिछले कई महीनों से सैंकड़ों कारीगरों ने मिल कर उसे तैयार किया था। नयनाभिराम रंगों से उसकी साज-सज्जा की गयी थी। अब तो लोगों से बस भी गयी थी वह।
उसी के मुख्य द्वार के पास लगे एक पेड़ पर हरा-सुनहरा टिड्डा पत्तियों में छिपा बैठा था। वह लगातार दीवार के एक छज्जे के नीचे चिपकी छिपकली को ललचाई नज़रों से देख रहा था। छिपकली की निग़ाह उस पर पड़ी तो वहीँ से चिल्ला कर बोल पड़ी-
-"ए, क्या हुआ? ऐसे क्या देख रहा है?"
-"सुन, तू वहाँ कैसे पहुंची? मुझे तो ये दरबान आने ही नहीं देता, देखते ही उड़ा देता है।" टिड्डा बोला।
छिपकली ने कहा- "तू यहाँ आकर करेगा क्या ? मैं तो छोटे-छोटे कीटों को खाकर दीवारों की सफाई करती हूँ, तू अहाते में खेल रहे बच्चों को ही काटेगा, क्यों आने दे वॉचमेन तुझे?"
टिड्डा अपना सा मुंह लेकर रह गया।
दोपहर को घूमती-घूमती छिपकली ही पेड़ की ओर चली आई। उसने टिड्डे को पूरी दास्तान सुनाई- "मैं भी कभी तेरी तरह यहाँ नई-नई आई थी। तब भवन पूरा बना भी नहीं था। इसी पेड़ के नीचे एक मजदूरनी अपने बच्चे को सुला कर काम पर भीतर जाती थी। मैं उसके बच्चे की हिफ़ाज़त चीटियों से करती थी। किसी चीटीं को उसके पास फटकने तक नहीं देती थी। बिल्डिंग पूरी होने पर वही मुझे अपनी गठरी में बैठा कर भीतर छोड़ गई। तभी से मैं यहाँ हूँ। तुझे यदि यहाँ रहना है तो किसी के काम आ।"
उसी के मुख्य द्वार के पास लगे एक पेड़ पर हरा-सुनहरा टिड्डा पत्तियों में छिपा बैठा था। वह लगातार दीवार के एक छज्जे के नीचे चिपकी छिपकली को ललचाई नज़रों से देख रहा था। छिपकली की निग़ाह उस पर पड़ी तो वहीँ से चिल्ला कर बोल पड़ी-
-"ए, क्या हुआ? ऐसे क्या देख रहा है?"
-"सुन, तू वहाँ कैसे पहुंची? मुझे तो ये दरबान आने ही नहीं देता, देखते ही उड़ा देता है।" टिड्डा बोला।
छिपकली ने कहा- "तू यहाँ आकर करेगा क्या ? मैं तो छोटे-छोटे कीटों को खाकर दीवारों की सफाई करती हूँ, तू अहाते में खेल रहे बच्चों को ही काटेगा, क्यों आने दे वॉचमेन तुझे?"
टिड्डा अपना सा मुंह लेकर रह गया।
दोपहर को घूमती-घूमती छिपकली ही पेड़ की ओर चली आई। उसने टिड्डे को पूरी दास्तान सुनाई- "मैं भी कभी तेरी तरह यहाँ नई-नई आई थी। तब भवन पूरा बना भी नहीं था। इसी पेड़ के नीचे एक मजदूरनी अपने बच्चे को सुला कर काम पर भीतर जाती थी। मैं उसके बच्चे की हिफ़ाज़त चीटियों से करती थी। किसी चीटीं को उसके पास फटकने तक नहीं देती थी। बिल्डिंग पूरी होने पर वही मुझे अपनी गठरी में बैठा कर भीतर छोड़ गई। तभी से मैं यहाँ हूँ। तुझे यदि यहाँ रहना है तो किसी के काम आ।"
बहुत खूब
ReplyDeleteसुन्दर लघुकथा !
ReplyDeleteNew post मोदी सरकार की प्रथामिकता क्या है ?
new post ग्रीष्म ऋतू !
Aap donon ka aabhaar! Modi sarkar ki prathmikta janne ki jigyasa hai.
ReplyDeleteसुन्दर प्रेरक कथा
ReplyDeleteDhanyawad.
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