ये बड़ी चौंकाने वाली बात थी। ऐसा तो कभी नहीं होता था। वह बहुत ज़्यादा देर से तो नहीं आई है, इस से भी ज़्यादा देर तो उसे पहले भी कई बार हुई है। फिर ये आज रोहित को क्या हो गया? ये इस तरह मुँह लटका कर क्यों बैठा है? केवल पलक के थोड़ा देर से आने पर इतनी नाराज़गी? रोहित जानता है न पलक का कॉलेज यहाँ से कितनी दूर है, फिर समय तो लगेगा ही न ? यही क्या कम है कि कॉलेज के बाद वह रोहित से मिलने सेंट्रल पार्क में चली आती है। रोहित के पास तो अपनी बाइक भी है, उसे तो बस से ही आना पड़ता है।वैसे रोहित कई बार कहता है कि वह उसे कॉलेज से ही पिक कर लेगा, पर वही मना कर देती है। उसे डर रहता है कि वहां रोहित को पलक की कोई फ्रेंड देख लेगी, तो बेकार तिल का ताड़ बना देगी। दूसरे,वह रोहित को थोड़ा इंतज़ार भी तो कराना चाहती है। ज़रा वह भी तो देखे कि जनाब कितने पानी में हैं?
पलक ने रोहित को उदास बैठे देखा तो गुस्से की जगह पहले थोड़े प्यार से काम लिया। उसे बताया कि पलक को देर क्यों हुई। लेकिन इस से भी बड़ा अचम्भा तो पलक को यह जान कर हुआ कि रोहित उसके देर से आने के कारण नाराज़ नहीं है, बल्कि उसकी उदासी तो किसी और बात को लेकर है।
अब तो पलक हाथ धोकर उसके पीछे पड़ गई। उसे कसम दे दी कि अपनी उदासी की वजह बताये।
पलक जानती थी कि इंजीनियरिंग के छात्र रोहित को साहित्य में कोई दिलचस्पी नहीं थी। लेकिन फिर भी वह आज संयोग से लायब्रेरी चला गया और वहां उसने एक नामचीन कवि की मशहूर किताब पढ़ डाली। किताब को पढ़ कर उसे पता चला कि आदम और हव्वा दुनिया के पहले स्त्री-पुरुष हैं, और बाकी सब उन्हीं की संतान।
-"तो इसमें उदास होने की क्या बात ?" पलक को अचरज हुआ।
-"तो हम सब भाई-बहन नहीं हुए?" रोहित ने मायूसी से कहा।
पलक ने रोहित को उदास बैठे देखा तो गुस्से की जगह पहले थोड़े प्यार से काम लिया। उसे बताया कि पलक को देर क्यों हुई। लेकिन इस से भी बड़ा अचम्भा तो पलक को यह जान कर हुआ कि रोहित उसके देर से आने के कारण नाराज़ नहीं है, बल्कि उसकी उदासी तो किसी और बात को लेकर है।
अब तो पलक हाथ धोकर उसके पीछे पड़ गई। उसे कसम दे दी कि अपनी उदासी की वजह बताये।
पलक जानती थी कि इंजीनियरिंग के छात्र रोहित को साहित्य में कोई दिलचस्पी नहीं थी। लेकिन फिर भी वह आज संयोग से लायब्रेरी चला गया और वहां उसने एक नामचीन कवि की मशहूर किताब पढ़ डाली। किताब को पढ़ कर उसे पता चला कि आदम और हव्वा दुनिया के पहले स्त्री-पुरुष हैं, और बाकी सब उन्हीं की संतान।
-"तो इसमें उदास होने की क्या बात ?" पलक को अचरज हुआ।
-"तो हम सब भाई-बहन नहीं हुए?" रोहित ने मायूसी से कहा।
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (30.05.2014) को "समय का महत्व " (चर्चा अंक-1628)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
ReplyDeleteये सही रही।
ReplyDeleteAap donon ka Aabhaar.
ReplyDeleteकहीं से तो शुरुआत होनी थी...शायद इसीलिये कहते हैं...हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई, आपस में सब भाई-भाई...
ReplyDeleteAapki baat sun kar Rohit khush hoga, aur use khush dekh kar Palak to khush hogi hi.
ReplyDeleteभई वाह।
ReplyDeleteAabhaar!
ReplyDeleteयह भी खूब रही अब बच्चों की साहित्य में रूचि नहीं तो क्या समझें। टी वी और ऍप्स में उलझे रहने वालों को क्या पता?बहुत सुन्दर सुन्दर
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