कुछ लोगों में रंग बदलने की प्रवृत्ति बड़ी जबर्दस्त और स्वाभाविक होती है। जैसे सब्ज़ियों में मिर्ची, जैसे फ़लों में ख़रबूज़ा, जैसे जानवरों में गिरगिट, वैसे ही इंसानों में वे।
वैसे "बदलना" कोई नकारात्मक प्रवाह नहीं है। बल्कि इसके उलट ये ताज़गी, प्रगतिशीलता और नवोन्मेष का प्रतीक ही है। यह वांछित भी है। लाखों वैज्ञानिक, चिंतक, लेखक, कलाकार जीवन में बदलाव के लिये निरन्तर कार्यरत हैं, और उनकी उपलब्धि यही है कि उनके प्रामाणिक सिद्ध प्रयोग हमें बदलें।
लेकिन बदलाव में नकारात्मकता यही है कि हम अपने स्वार्थ के लिये बदलें। यह अवसरवादिता है। दूसरों की उपलब्धि को अपने खाते में डाल कर जो संतोष हम कमाते हैँ, वह नकारात्मक है।
केवल एक सप्ताह बाद हम ऐसे कई लोगों से मिलेंगे जो तालियों की गड़गड़ाहट के बीच दौड़ जीतने का लुत्फ़ उठा रहे होंगे, क्या हुआ जो वे अभी दौड़ नहीं रहे।
वैसे "बदलना" कोई नकारात्मक प्रवाह नहीं है। बल्कि इसके उलट ये ताज़गी, प्रगतिशीलता और नवोन्मेष का प्रतीक ही है। यह वांछित भी है। लाखों वैज्ञानिक, चिंतक, लेखक, कलाकार जीवन में बदलाव के लिये निरन्तर कार्यरत हैं, और उनकी उपलब्धि यही है कि उनके प्रामाणिक सिद्ध प्रयोग हमें बदलें।
लेकिन बदलाव में नकारात्मकता यही है कि हम अपने स्वार्थ के लिये बदलें। यह अवसरवादिता है। दूसरों की उपलब्धि को अपने खाते में डाल कर जो संतोष हम कमाते हैँ, वह नकारात्मक है।
केवल एक सप्ताह बाद हम ऐसे कई लोगों से मिलेंगे जो तालियों की गड़गड़ाहट के बीच दौड़ जीतने का लुत्फ़ उठा रहे होंगे, क्या हुआ जो वे अभी दौड़ नहीं रहे।
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