किसी विद्वान ने इतिहास में हुए राजाओं को भ्रष्टाचार से निपटने के उनके तरीके के आधार पर चार किस्मों में बाँट दिया.
पहली किस्म उन राजाओं की थी जो न तो स्वयं भ्रष्टाचार करते थे और न ही किसी और को ऐसा करने देते थे.
दूसरी श्रेणी उन राजाओं से बनी,जो जनता का भ्रष्ट होना तो स्वीकार कर लेते थे, पर स्वयं किसी तरह का भ्रष्टाचार नहीं करते थे.
तीसरी जमात में वे राजा आते थे जो थोड़े बहुत भ्रष्टाचार को बुरा नहीं समझते थे, वे खुद भी इसमें लिप्त हो जाते थे और प्रजा को भी इसकी अनुमति दे देते थे.
चौथा वर्ग उन दबंग राजाओं का था जो जनता का भ्रष्टाचारी होना कतई बर्दाश्त नहीं करते थे,और जो कुछ हेरा-फेरी या भ्रष्टाचार करना हो, उसे स्वयं ही सम्पादित करते थे.
इन गुणों के आधार पर ही इन राजाओं के शासन की अवधि भी निर्धारित होती थी.
पहली श्रेणी के राजाओं के राज का सूरज जम कर चमकता था किन्तु जल्दी ही अस्त हो जाता था.
दूसरी किस्म के राजाओं के राज की नैय्या डगमगाती रहती थी और जल्दी ही डूब भी जाती थी.
तीसरी प्रकार के राजा अपना शासन लम्बे समय तक खींच ले जाते थे.
चौथी प्रकार के राजा सिंहासन से कभी नहीं हटते थे, वे पदार्थ की भांति अवस्था बदल कर,बहरूपियों की भांति रूप बदल कर, पवन की तरह दिशा बदल कर, अथवा जल की नाईं तल बदल कर किसी न किसी भांति सत्ता में बने रहते थे.
भारतीय रंगमंच के ग्रीनरूम में इस समय ऐसे कई राजा चोले बदलने में व्यस्त हैं.अपनी तेरहवीं पर, क्षमा कीजिये,आज से तेरह दिन बाद,वे नए अवतार में, नए चोले में पुनर्जन्म पा फिर राजयोग भोगेंगे।
पहली किस्म उन राजाओं की थी जो न तो स्वयं भ्रष्टाचार करते थे और न ही किसी और को ऐसा करने देते थे.
दूसरी श्रेणी उन राजाओं से बनी,जो जनता का भ्रष्ट होना तो स्वीकार कर लेते थे, पर स्वयं किसी तरह का भ्रष्टाचार नहीं करते थे.
तीसरी जमात में वे राजा आते थे जो थोड़े बहुत भ्रष्टाचार को बुरा नहीं समझते थे, वे खुद भी इसमें लिप्त हो जाते थे और प्रजा को भी इसकी अनुमति दे देते थे.
चौथा वर्ग उन दबंग राजाओं का था जो जनता का भ्रष्टाचारी होना कतई बर्दाश्त नहीं करते थे,और जो कुछ हेरा-फेरी या भ्रष्टाचार करना हो, उसे स्वयं ही सम्पादित करते थे.
इन गुणों के आधार पर ही इन राजाओं के शासन की अवधि भी निर्धारित होती थी.
पहली श्रेणी के राजाओं के राज का सूरज जम कर चमकता था किन्तु जल्दी ही अस्त हो जाता था.
दूसरी किस्म के राजाओं के राज की नैय्या डगमगाती रहती थी और जल्दी ही डूब भी जाती थी.
तीसरी प्रकार के राजा अपना शासन लम्बे समय तक खींच ले जाते थे.
चौथी प्रकार के राजा सिंहासन से कभी नहीं हटते थे, वे पदार्थ की भांति अवस्था बदल कर,बहरूपियों की भांति रूप बदल कर, पवन की तरह दिशा बदल कर, अथवा जल की नाईं तल बदल कर किसी न किसी भांति सत्ता में बने रहते थे.
भारतीय रंगमंच के ग्रीनरूम में इस समय ऐसे कई राजा चोले बदलने में व्यस्त हैं.अपनी तेरहवीं पर, क्षमा कीजिये,आज से तेरह दिन बाद,वे नए अवतार में, नए चोले में पुनर्जन्म पा फिर राजयोग भोगेंगे।
भाई गोविल, इन नेताओं को आप तो भिगो-भिगोकर मारने लगे . १६ मई का इन्तजार तो कर लो .
ReplyDeleteसटीक लेख
ReplyDeleteAap donon ka Dhanyawad.
ReplyDeleteसुन्दर, अच्छा व्यंग किया आपने चलो देखें इंतजार रहेगा देश को किस श्रेणी का शासक मिलेगा
ReplyDeleteDhanyawad, Intzaar hai...
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