यह बात शत-प्रतिशत सही है कि बच्चों के कोर्स की किताबों में उन लोगों की उपलब्धियों को नहीं डाला जाना चाहिए, जो जीवित हैं, और अब भी सक्रिय हैं। इसके कई कारण हैं-
१. बच्चा तो कोर्स पढ़ कर आगे निकल जाएगा, पर उस व्यक्ति की उपलब्धियाँ आगे और भी बढ़ सकती हैं, जबकि बच्चे के दिमाग में अंतिम रूप से उसकी वही छवि अंकित हो जायेगी।
२. हो सकता है कालांतर में वह व्यक्ति कर्तव्यविमुख होकर अपनी छवि के विपरीत कार्य कर बैठे।
३. सब चाहते हैं कि वे इतिहास में दर्ज़ हों, वर्तमान में नहीं !
४. ये एक ऐसा क्यू है जिसमें सब लगना चाहते हैं, किन्तु व्यक्ति एक बार दिवंगत हो जाने के बाद क्यू में बार-बार नहीं लग सकेगा।
५. जीवित व्यक्ति अपनी छवि के निर्माण या छवि के परिवर्तन हेतु अवांछित दबाव बना सकता है।
६. लोग जीवित व्यक्ति की अच्छाइयों को भी जल्दी से स्वीकार नहीं करते।
७. लोग दिवंगत व्यक्ति की कमियों को सहजता से अनदेखा कर देते हैं।
१. बच्चा तो कोर्स पढ़ कर आगे निकल जाएगा, पर उस व्यक्ति की उपलब्धियाँ आगे और भी बढ़ सकती हैं, जबकि बच्चे के दिमाग में अंतिम रूप से उसकी वही छवि अंकित हो जायेगी।
२. हो सकता है कालांतर में वह व्यक्ति कर्तव्यविमुख होकर अपनी छवि के विपरीत कार्य कर बैठे।
३. सब चाहते हैं कि वे इतिहास में दर्ज़ हों, वर्तमान में नहीं !
४. ये एक ऐसा क्यू है जिसमें सब लगना चाहते हैं, किन्तु व्यक्ति एक बार दिवंगत हो जाने के बाद क्यू में बार-बार नहीं लग सकेगा।
५. जीवित व्यक्ति अपनी छवि के निर्माण या छवि के परिवर्तन हेतु अवांछित दबाव बना सकता है।
६. लोग जीवित व्यक्ति की अच्छाइयों को भी जल्दी से स्वीकार नहीं करते।
७. लोग दिवंगत व्यक्ति की कमियों को सहजता से अनदेखा कर देते हैं।
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