भारतीय चुनावी परिद्रश्य देख कर कहा जा रहा है कि यह घमासान "कुर्सी" के लिए है। लेकिन कुर्सी सबकी हसरत नहीं होती , क्योंकि कुर्सी जिम्मेदारी है, कुर्सी क्षमता है, कुर्सी जवाबदेही है।
अधिकांश उम्मीदवारों के पास न ये क्षमता है, न ये भावना।
यहाँ जिसे जो चाहिए, वह मिल जायेगा। आइये देखें, किसे क्या चाहिए-
-कुछ लोग केवल इसलिए मैदान में हैँ कि इस उठने-बैठने से उन्हें कुछ पैसा मिल जाये।
-कुछ लोग इसलिए हैं कि उन्होंने कमा-कमा कर जो ढेर लगा लिया है वह काम आ जाए।
-कुछ लोग इसलिए ताल ठोक रहे हैँ कि दूसरा कुर्सी पर बैठ कर काम करे, और हम उसपर छींटाकशी-नुक्ताचीनी करें।
-कुछ लोग चाहते हैं कि काम करने वाला मिल जाय, हम केवल "ताज" संभालें।
-कुछ इसलिए भी हैं कि मीडिया की सुर्खियों में थोड़े दिन आनंद लिया जाय।
-निस्संदेह,कुछ इसलिए हैं कि देश को जिस दिशा में ले जाना चाहते हैं उसके लिये सामर्थ्य मिले।
अधिकांश उम्मीदवारों के पास न ये क्षमता है, न ये भावना।
यहाँ जिसे जो चाहिए, वह मिल जायेगा। आइये देखें, किसे क्या चाहिए-
-कुछ लोग केवल इसलिए मैदान में हैँ कि इस उठने-बैठने से उन्हें कुछ पैसा मिल जाये।
-कुछ लोग इसलिए हैं कि उन्होंने कमा-कमा कर जो ढेर लगा लिया है वह काम आ जाए।
-कुछ लोग इसलिए ताल ठोक रहे हैँ कि दूसरा कुर्सी पर बैठ कर काम करे, और हम उसपर छींटाकशी-नुक्ताचीनी करें।
-कुछ लोग चाहते हैं कि काम करने वाला मिल जाय, हम केवल "ताज" संभालें।
-कुछ इसलिए भी हैं कि मीडिया की सुर्खियों में थोड़े दिन आनंद लिया जाय।
-निस्संदेह,कुछ इसलिए हैं कि देश को जिस दिशा में ले जाना चाहते हैं उसके लिये सामर्थ्य मिले।
सही विश्लेषण , सटीक बात .
ReplyDeleteDhanyawad.
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