वैसे तो ज़िंदगी हर घड़ी ही रूप बदलती है, किन्तु फिर भी इंसान की ज़िंदगी के चंद पड़ाव बदलाव की दृष्टि से ख़ासे अहम होते हैं। इन लम्हों में हम अपने अंतरतम तक बदलाव से गुज़रते हैं।
लगभग सौ दिन[100] का बच्चा पहली बार इस अहसास से दो-चार होता है कि यदि कुछ चाहिए, तो इशारा करो।
लगभग सात[7] महीने के बच्चे में यह समझ विकसित होनी शुरू होती है कि नज़र आने वाले सभी अपने नहीं हैं। लगभग दो[2] साल का बच्चा यह समझने लगता है कि माँ अपने साथ पक्षपाती है।
चार[4] साल का बच्चा ये सबक़ सीख जाता है कि अपने हितों का बचाव करना है।
ग्यारहवाँ[11] साल बच्चे को यह आश्वस्ति दे देता है कि यदि माँ-बाप उसके अपने बराबर भाव किसी और को दे रहे हैं तो यह मात्र शिष्टाचार है।
सत्रहवाँ[17] साल मन में यह सतर्कता जगा देता है कि कोई देख रहा है।
बाइसवाँ[22] साल यह अहसास जगाता है कि फैसले अपने ही होने चाहिए।
उन्तीसवाँ[29] साल मन पर दबाव बनाता है कि चीज़ें अब साफ़ हो ही जानी चाहिए।
चौतीसवाँ[34] और बयालीसवाँ[42] साल प्रेरित करता है कि कुछ जोड़ना चाहिए।
छप्पनवाँ[56] साल बचपन में पढ़ी रेखागणित और शिद्दत से याद दिलाता है। कोण,वृत्त,पैराबोला ,ग्राफ़ मन में दोहराये जाते हैं।
त्रेसठवां[63] साल स्वाद पकड़ के रखना सिखाता है।
चौहत्तरवाँ[74] साल चलते समय आस-पास की दीवारों को देखने की आदत बना देता है।
इक्यासीवाँ[81] साल मन में भीरुता को प्रश्रय देता है।
नब्भेवें [90] साल में हंसी खुल जाती है।
चौरानवे[94] साल के आदमी का मन आशीष देने को मचलता है।
निन्यानवे[99] साल के व्यक्ति की भृकुटियाँ तन जाती हैं।
याद रखें, हमें गढ़ते समय विधाता "जितने बनाने हैं उतने साँचे" लेकर बैठता है।
लगभग सौ दिन[100] का बच्चा पहली बार इस अहसास से दो-चार होता है कि यदि कुछ चाहिए, तो इशारा करो।
लगभग सात[7] महीने के बच्चे में यह समझ विकसित होनी शुरू होती है कि नज़र आने वाले सभी अपने नहीं हैं। लगभग दो[2] साल का बच्चा यह समझने लगता है कि माँ अपने साथ पक्षपाती है।
चार[4] साल का बच्चा ये सबक़ सीख जाता है कि अपने हितों का बचाव करना है।
ग्यारहवाँ[11] साल बच्चे को यह आश्वस्ति दे देता है कि यदि माँ-बाप उसके अपने बराबर भाव किसी और को दे रहे हैं तो यह मात्र शिष्टाचार है।
सत्रहवाँ[17] साल मन में यह सतर्कता जगा देता है कि कोई देख रहा है।
बाइसवाँ[22] साल यह अहसास जगाता है कि फैसले अपने ही होने चाहिए।
उन्तीसवाँ[29] साल मन पर दबाव बनाता है कि चीज़ें अब साफ़ हो ही जानी चाहिए।
चौतीसवाँ[34] और बयालीसवाँ[42] साल प्रेरित करता है कि कुछ जोड़ना चाहिए।
छप्पनवाँ[56] साल बचपन में पढ़ी रेखागणित और शिद्दत से याद दिलाता है। कोण,वृत्त,पैराबोला ,ग्राफ़ मन में दोहराये जाते हैं।
त्रेसठवां[63] साल स्वाद पकड़ के रखना सिखाता है।
चौहत्तरवाँ[74] साल चलते समय आस-पास की दीवारों को देखने की आदत बना देता है।
इक्यासीवाँ[81] साल मन में भीरुता को प्रश्रय देता है।
नब्भेवें [90] साल में हंसी खुल जाती है।
चौरानवे[94] साल के आदमी का मन आशीष देने को मचलता है।
निन्यानवे[99] साल के व्यक्ति की भृकुटियाँ तन जाती हैं।
याद रखें, हमें गढ़ते समय विधाता "जितने बनाने हैं उतने साँचे" लेकर बैठता है।
विधाता के सांचे समझ से परे हैं।
ReplyDeleteSwagat, Isi liye vah Vidhata hai.
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