एक बार घूमते-घूमते एक संत एक गाँव में आ पहुंचे। लोगों ने थोड़ी आवभगत की, और वह प्रसन्न हो गए।थे तो इंसान ही, पर कुछ सिद्धियाँ भी थीं। उन्हीं के बल पर लोगों से बोले- "यदि कुछ मांगना चाहते हैं तो मांग लीजिये, कोशिश करूँगा कि आपको मिले।"
तत्काल कुछ उत्साही युवकों ने कहा- "ऐसा कुछ कीजिये कि हम सबके अच्छे दिन आ जाएँ।"
संत एकाएक गंभीर हो गए और बोले- "नहीं आएंगे !"
युवक अवाक रह गए। आश्चर्य से बोले- "क्यों श्रीमान?"
संत ने कहा- "अच्छा, पहले ये बताइये कि अच्छे दिन आप किन्हें मानेंगे?"
युवकों ने अपने उद्गारों की झड़ी लगा दी- "हम सब संपन्न हों, हम सबको समय पर भोजन-कपड़ा-शिक्षा-आवास मिले,कोई बीमार न हो, अपराध न हों,कोई लड़ाई-झगड़ा न हो, व्यापार में मुनाफ़ा मिले, कहीं गंदगी न हो, हमारा मनोरंजन हो" आदि- आदि।
संत बोले- "यदि बैठे-बैठे भोजन चाहेंगे तो आपकी माता के अच्छे दिन नहीं आएंगे, आपको आवास और वस्त्र देने में आपके पिता के अच्छे दिन खो जाएंगे, कोई बीमार न हुआ तो डाक्टर-वैद्य-दवा बेचने वालों के अच्छे दिन नहीं आएंगे, अपराध न हुए तो पुलिस के अच्छे दिन नहीं आएंगे, लड़ाई-झगड़ा मिट गया तो वकीलों-न्यायाधीशों-प्रशासन के अच्छे दिन नहीं आएंगे, व्यापार में मुनाफ़ा मिला तो मंहगाई बढ़ने से गरीबों के अच्छे दिन नहीं आएंगे, कहीं गंदगी नहीं हुई तो सफ़ाई-कर्मियों को काम का संकट आएगा, आपको गहरी शिक्षा देने में आपके अध्यापकों के अच्छे दिन खप जायेंगे, यदि आपने नशे और छेड़छाड़ से मनोरंजन किया तो महिलाओं के अच्छे दिन नहीं आएंगे।"
युवक निराश हो गए, मायूसी से बोले- "तो क्या अच्छे दिन कभी नहीं आएंगे?"
संत ने कहा- "आ सकते हैं, केवल आपको अच्छे दिन की परिभाषा बदलनी होगी,आप अच्छे दिन उन्हें मानें जिनमें आप कड़ी मेहनत करें, खुद से ज्यादा दूसरों का ध्यान रखें, कुछ पाने की जगह कुछ देकर खुश हों।"
तत्काल कुछ उत्साही युवकों ने कहा- "ऐसा कुछ कीजिये कि हम सबके अच्छे दिन आ जाएँ।"
संत एकाएक गंभीर हो गए और बोले- "नहीं आएंगे !"
युवक अवाक रह गए। आश्चर्य से बोले- "क्यों श्रीमान?"
संत ने कहा- "अच्छा, पहले ये बताइये कि अच्छे दिन आप किन्हें मानेंगे?"
युवकों ने अपने उद्गारों की झड़ी लगा दी- "हम सब संपन्न हों, हम सबको समय पर भोजन-कपड़ा-शिक्षा-आवास मिले,कोई बीमार न हो, अपराध न हों,कोई लड़ाई-झगड़ा न हो, व्यापार में मुनाफ़ा मिले, कहीं गंदगी न हो, हमारा मनोरंजन हो" आदि- आदि।
संत बोले- "यदि बैठे-बैठे भोजन चाहेंगे तो आपकी माता के अच्छे दिन नहीं आएंगे, आपको आवास और वस्त्र देने में आपके पिता के अच्छे दिन खो जाएंगे, कोई बीमार न हुआ तो डाक्टर-वैद्य-दवा बेचने वालों के अच्छे दिन नहीं आएंगे, अपराध न हुए तो पुलिस के अच्छे दिन नहीं आएंगे, लड़ाई-झगड़ा मिट गया तो वकीलों-न्यायाधीशों-प्रशासन के अच्छे दिन नहीं आएंगे, व्यापार में मुनाफ़ा मिला तो मंहगाई बढ़ने से गरीबों के अच्छे दिन नहीं आएंगे, कहीं गंदगी नहीं हुई तो सफ़ाई-कर्मियों को काम का संकट आएगा, आपको गहरी शिक्षा देने में आपके अध्यापकों के अच्छे दिन खप जायेंगे, यदि आपने नशे और छेड़छाड़ से मनोरंजन किया तो महिलाओं के अच्छे दिन नहीं आएंगे।"
युवक निराश हो गए, मायूसी से बोले- "तो क्या अच्छे दिन कभी नहीं आएंगे?"
संत ने कहा- "आ सकते हैं, केवल आपको अच्छे दिन की परिभाषा बदलनी होगी,आप अच्छे दिन उन्हें मानें जिनमें आप कड़ी मेहनत करें, खुद से ज्यादा दूसरों का ध्यान रखें, कुछ पाने की जगह कुछ देकर खुश हों।"
मामला द्विपक्षीय तो है - जनता अपना काम ईमानदारी से करे और सरकार उनका ध्यान ईमानदारी से धरे। क्योंकि किसी भी समाज मे ऐसे लोग तो रहेंगे ही जिन्हें बाह्य सहायता की आवश्यकता रहेगी।
ReplyDeleteAapka aabhaar ! ummeed ke haare-moti sapnon par latke rahe to "shubh"zaroor hoga.
ReplyDeleteKshma karen, main HEERE ko galat likh gaya .
ReplyDelete:)
Deleteबिल्कुल सही शिक्षा
ReplyDeleteDhanyawad.
ReplyDeleteअच्छा महसूस करने की एक मानसिक प्रक्रिया है किसी का अच्छा किसी का बुरा भी हो सकता है से कार्य करना व मिले से संतुष्ट होना ही अच्छा दिन है
ReplyDeleteAapki baat sahi hai, Dhanyawad.
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