Wednesday, May 7, 2014

और वह इतिहास में सच्चे जानवर के रूप में अमर हो गया

  एक शेर था।  एक दिन बैठे-बैठे उसे ये ख़्याल आया कि उसने हमेशा जंगल के प्राणियों को मार कर ही खाया है, कभी किसी का कुछ भला नहीं किया। इंसान हो या जानवर, कुछ भला काम करने की  इच्छा तो कभी-कभी जागती ही है।  अतः उसने भी सोचा कि अब से मैं केवल सत्य ही बोलूंगा।
सवाल ये था कि वह सत्य बोले तो कैसे बोले, क्योंकि उसके पास आने की हिम्मत तो किसी की थी नहीँ,वह खुद भी किसी के पास जाता तो उसे देखते ही सामने वाला जान बचा कर भाग जाता।
किन्तु अब तय कर लिया था तो सच भी बोलना ही था।
आख़िर उसे एक उपाय सूझ ही गया।  वह सुबह जब अपनी माँद से निकलता तो जोर से चिल्लाता कि मैं  आ रहा हूं,और जो भी मुझे राह में मिलेगा मैँ उसे मार कर खाऊँगा।
अब तो उसकी राह में कोई परिंदा भी कभी पर नहीँ मारता था। भूख से तड़पता हुआ वह थोड़े ही दिनों में मरणासन्न हो गया। उसे बेदम पड़े देख कर आसपास के जानवर उसकी मिज़ाज़पुर्सी को वहाँ आने लगे। वह उन्हें अपनी कहानी सुनाता कि कैसे उसने खुद अपना ये हाल किया।
आख़िर एक दिन एक नन्हे बटेर ने उससे पूछ ही लिया -"चाचा,सच बोलने की क़सम लेने से पहले तुम शिकार कैसे करते थे?"
शेर ने कहा-"मैं बिना कुछ बोले दबे पाँव शिकार पर झपटता था।"
बटेर ने हैरत से कहा-"तो फिर बोलने के चक्कर में पड़े ही क्यों? तुम झूठ बोलकर तो नहीं खा रहे थे !"
पर अब क्या हो सकता था, जब चिड़िया चुग गई खेत।                    

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