Sunday, June 1, 2014

एक चिट्ठी ऑस्ट्रेलिया-वासियों के नाम

आदरणीय ऑस्ट्रेलिया - वासी गण,
नमस्कार !
मैं पहले ही कुछ बातों के लिए आपसे क्षमा मांग लूँ, पहली तो इसलिए कि आपसे अत्यंत नाज़ुक आभासी पहचान होते हुए भी मैंने आपको चिट्ठी लिख दी।जबकि आजकल न तो चिट्ठी लिखने का कोई चलन है और न ही इसका जवाब आने की गारंटी।
दूसरा, हम भारतीयों की आदत होती है कि किसी से कोई काम पड़ने पर ही चिट्ठी लिखते हैं।  और किसी को भी कोई काम बताने में हम संकोच नहीं करते। हमारे ज़्यादातर काम चिट्ठियों के सहारे ही होते हैं।
तीसरी बात ये है कि हम लोगों के पास समय की कोई कमी नहीं होती और हम समय काटने के लिए चिट्ठी लिखने को आज भी सबसे सस्ता, सुन्दर और सहज कारण मानते हैं।
अब मैं अपनी चिट्ठी की मुख्य इबारत पर आता हूँ। वैसे मैं आपको बतादूं कि चिट्ठियों में हम लोग इतनी जल्दी मुद्दे पर नहीं आते।
खैर, तो समाचार ये है कि मुझे आपकी मदद चाहिए। मैं चाहता हूँ कि ज़ेनिन नाम की एक महिला यदि आपको वहां कहीं दिखे, तो आप उसे मेरा नमस्कार कह दें। मैं उसकी कुछ पहचान बतादूँ , ताकि आप उसे पहचान लें, वह बहुत भली और इंडिया के बारे में दिलचस्पी रखने वाली महिला है।
वह मेरी एक कहानी "ये नाम उन्होंने रख दिया था" की नायिका है।  शेष शुभ ! आपका आभार !        
पुनश्च- मेरी कहानी "ये नाम उन्होंने रख दिया था"आप मेरी किताब "खाली हाथ वाली अम्मा" में पढ़ेंगे !

2 comments:

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