Wednesday, June 11, 2014

बीस साल बाद

अपने स्कूल में बैठी वे दोनों छोटी लड़कियां बड़े ध्यान से सुन रही थीं, उनका टीचर बता रहा था कि आप गले में हीरे का हार पहन सकते हैं, और यदि न चाहें तो न भी पहन सकते हैं।
टीचर ने कहा- "यदि आप हार नहीं पहनते तो अपने मन में सोचिये, कि जिस धरती पर हम चल रहे हैं,उसके गर्भ में तो हज़ारों हीरे दबे पड़े हैं, इन्हें गले में क्या लटकाना ? लेकिन यदि आप हीरे का हार पहनते हैं तो सोचिये- वाह ! अद्भुत ! मेरे गले का हार कितना लाजवाब और कीमती है।" [ अर्थात दोनों स्थितियों में सुखी और संतुष्ट रहिये]
संयोग देखिये, कि एक लड़की ने हार पहन लिया और दूसरी ने नहीं पहना।
बीस साल गुज़र गए।
पहली लड़की जिस गाँव में रहती थी वह अब एक शहर बन चुका था। वहां सुनारों की कई दुकानें थीं।  पास ही एक बढ़ई ज्वैलरी के खूबसूरत बक्से बनाता था। एक लोहार ने सांकलें बनाने की छोटी सी दुकान खोल ली थी। नज़दीक ही एक तालों की फैक्ट्री थी।  दवा-दारु के लिए छोटे-बड़े क्लिनिक खुल गए थे। पास ही पुलिस थाना था।  एक सेंटर में बच्चे सुरक्षाकर्मी बनने की ट्रेनिंग लेते थे।  बैंक खुल गए थे जो पैसा भी देते थे और गहने रेहन भी रखते थे।  लड़के-लड़कियाँ ज्वैलरी डिज़ाइनिंग सीखते थे।  गाड़ी -घोड़े दिनभर दौड़ते थे, सड़कें चौड़ी हो गई थीं, प्रदूषण मिटाने को बाग़-बगीचे लगा दिए गए थे।रोजगार के लिए आसपास के गाँवों से लोग वहां आते थे।
दूसरी लड़की जिस गाँव में रहती थी, वहां का पर्यावरण बड़ा सुहाना था।  पर्वत, जंगल, झरने, हरियाली सबका मन मोहते थे। वहां की सादगी और आबो-हवा दूर-दूर तक प्रसिद्ध थी। गाँव में शांति का वास था, लोग रोज़गार के लिए आसपास चले गए थे।                       
  

2 comments:

  1. बहुत गहरी बात कह गए, गोविल भाई .

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हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

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