किसी गाँव से कोई चार साल का बच्चा मुंबई नहीं भागता। चार साल का बच्चा पॉटी करने भी जाता है तो पहले अपनी माँ की ओर देखता है।
लेकिन अगर माँ न हो तो ?
तब चार तो क्या, चौदह साल का बच्चा भी डरता है कि जब भूख लगेगी तो क्या होगा।
ये बात अलग है कि यही बच्चा जब चालीस साल का हो जाता है तो ऐसा सोचने लग जाता है कि माँ यदि दीर्घायु हो गई तो इसे कहाँ रखेंगे ?
लेकिन अखिल्या भाग गया। कहाँ गया, कैसे गया, किसके साथ गया, ये कोई नहीं जानता, पर इतना सब जानते हैं कि मशहूर फिल्म निर्देशक अखिलेश्वर बाबू मुंबई से ही आये हैं।
सब जानते हैं कि आसपास के दर्जनों गाँवों की भीड़ जिस फिल्म की शूटिंग देखने आई हुई है, उसके निर्माता अखिलेश्वर बाबू ही हैं। तभी न सारे अखबार इस खबर से भरे पड़े हैं।
सरकार और फिल्म सेंसर बोर्ड ने तो ये कहा था कि किसी औरत को सती हो जाने के लिए प्रेरित करने वाली फिल्म को पास नहीं करेंगे। "सती" होने का अर्थ है - किसी आदमी के मर जाने पर उसकी औरत का उसके साथ ज़िंदा जल जाना।
अखिलेश्वर बाबू की फिल्म किसी औरत को सती होने के लिए उकसाएगी नहीं, बल्कि उन लोगों की अच्छी तरह खबर लेगी, जो किसी औरत को इस जघन्य आत्महत्या के लिए उकसाते हैं।
अखिल्या अपनी माँ को दहकती लपटों के बीच ज़िंदा जलते न देखता तो भला गाँव से भागता क्यों?
"खाली हाथ वाली अम्मा" में आप पढ़ेंगे मेरी कहानी-"अखिलेश्वर बाबू"
लेकिन अगर माँ न हो तो ?
तब चार तो क्या, चौदह साल का बच्चा भी डरता है कि जब भूख लगेगी तो क्या होगा।
ये बात अलग है कि यही बच्चा जब चालीस साल का हो जाता है तो ऐसा सोचने लग जाता है कि माँ यदि दीर्घायु हो गई तो इसे कहाँ रखेंगे ?
लेकिन अखिल्या भाग गया। कहाँ गया, कैसे गया, किसके साथ गया, ये कोई नहीं जानता, पर इतना सब जानते हैं कि मशहूर फिल्म निर्देशक अखिलेश्वर बाबू मुंबई से ही आये हैं।
सब जानते हैं कि आसपास के दर्जनों गाँवों की भीड़ जिस फिल्म की शूटिंग देखने आई हुई है, उसके निर्माता अखिलेश्वर बाबू ही हैं। तभी न सारे अखबार इस खबर से भरे पड़े हैं।
सरकार और फिल्म सेंसर बोर्ड ने तो ये कहा था कि किसी औरत को सती हो जाने के लिए प्रेरित करने वाली फिल्म को पास नहीं करेंगे। "सती" होने का अर्थ है - किसी आदमी के मर जाने पर उसकी औरत का उसके साथ ज़िंदा जल जाना।
अखिलेश्वर बाबू की फिल्म किसी औरत को सती होने के लिए उकसाएगी नहीं, बल्कि उन लोगों की अच्छी तरह खबर लेगी, जो किसी औरत को इस जघन्य आत्महत्या के लिए उकसाते हैं।
अखिल्या अपनी माँ को दहकती लपटों के बीच ज़िंदा जलते न देखता तो भला गाँव से भागता क्यों?
"खाली हाथ वाली अम्मा" में आप पढ़ेंगे मेरी कहानी-"अखिलेश्वर बाबू"
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