महिलाओं के प्रति हिंसा, प्रताड़ना और अपराध का मीडिया में छा जाना क्या ज़ाहिर करता है ? आइये देखें-
१. कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन पर बेवज़ह अनर्गल बोल कर भी अखबारी सुर्ख़ियों में रहा जा सकता है, और यह प्रचार विज्ञापनों की वर्तमान दरों से बहुत सस्ता है।
२. महिलाओं के बढ़ते ज्ञान, शक्ति और अधिकार सम्पन्नता से पुरुष-समाज बौखलाया हुआ है। यद्यपि, अपने महिला-आक्रमणों में ये वर्ग महिलाओं का उपयोग भी कर रहा है।
३. मौजूदा क़ानून के विदोहन के लिए राजनैतिक रूप से लोहा गर्म देख कर बरसों पुराने हिसाब-किताब भी चुकाए जा रहे हैं।
४. कई महीनों तक चले चुनाव-संग्राम में प्रचुर सामग्री मिलते रहने के बाद, मीडिया के सामने "जगह ज्यादा, मसाला कम" का संकट है।
५. सत्ता परिवर्तन ताज़ा-ताज़ा है, इसलिए "तिल का ताड़" बनाने में सिद्धहस्त कई "भूतपूर्व-ठाले"अद्भुत रूप से सक्रिय हैं। उन्हें ये फुलटाइम जॉब रास आ रहा है।
५. कहते हैं-"ख़ाली दिमाग शैतान का घर" और इस समय तख़्ता-उलट के बाद खाली दिमागों का बोलबाला है। लेकिन ऐसा नहीं है कि समस्या कम गंभीर है, इससे युद्ध-स्तर पर लड़ा तो जाना ही चाहिए।
१. कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन पर बेवज़ह अनर्गल बोल कर भी अखबारी सुर्ख़ियों में रहा जा सकता है, और यह प्रचार विज्ञापनों की वर्तमान दरों से बहुत सस्ता है।
२. महिलाओं के बढ़ते ज्ञान, शक्ति और अधिकार सम्पन्नता से पुरुष-समाज बौखलाया हुआ है। यद्यपि, अपने महिला-आक्रमणों में ये वर्ग महिलाओं का उपयोग भी कर रहा है।
३. मौजूदा क़ानून के विदोहन के लिए राजनैतिक रूप से लोहा गर्म देख कर बरसों पुराने हिसाब-किताब भी चुकाए जा रहे हैं।
४. कई महीनों तक चले चुनाव-संग्राम में प्रचुर सामग्री मिलते रहने के बाद, मीडिया के सामने "जगह ज्यादा, मसाला कम" का संकट है।
५. सत्ता परिवर्तन ताज़ा-ताज़ा है, इसलिए "तिल का ताड़" बनाने में सिद्धहस्त कई "भूतपूर्व-ठाले"अद्भुत रूप से सक्रिय हैं। उन्हें ये फुलटाइम जॉब रास आ रहा है।
५. कहते हैं-"ख़ाली दिमाग शैतान का घर" और इस समय तख़्ता-उलट के बाद खाली दिमागों का बोलबाला है। लेकिन ऐसा नहीं है कि समस्या कम गंभीर है, इससे युद्ध-स्तर पर लड़ा तो जाना ही चाहिए।
No comments:
Post a Comment