यदि कोई आपसे कहे कि आप आठ बजे खाने पर आइये।
कोई आपसे कहे कि फिल्म आठ बजे शुरू होगी, देखने आइये।
कोई आपसे कहे कि आपकी परीक्षा आठ बजे से है।
कोई आपसे कहे कि मुख्यमंत्री आठ बजे आ रहे हैं, उनकी सभा में आइये।
कोई आपसे कहे कि आपकी गाड़ी का डिपार्चर टाइम आठ बजे है।
इन प्रश्नों का उत्तर क्या है? क्या आप इन पाँचों जगह ठीक आठ बजे पहुँच जाएंगे?
शायद नहीं। इनमें से कुछ जगह आप शायद साढ़े सात बजे ही पहुँच जाएँ, और हो सकता है कहीं आपको पहुँचते-पहुँचते दस भी बज जाएँ।
तो ये कौन तय करता है कि हमें किसकी बात को कितनी गंभीरता से लेना है?
हम खुद। और इसके लिए हम सब के पास एक दिमाग है, जो हमारे ये विभेद तय करता है कि हम किस बात से कितना हट सकते हैं।
हम सब के पास एक अदृश्य रस्सी भी है जो हम ऐसे समय दिमाग़ को दे देते हैं,दिमाग़ चाहे तो इस रस्सी से हमें उस बात से बाँध दे और चाहे तो एक सिरा हमसे बाँध कर दूसरा सिरा ढीला छोड़ दे। यह ढील जितनी होगी, हम उस बात से उतना ही हट पाएंगे।
इसे हम "आदत" कहते हैं ।
कोई आपसे कहे कि फिल्म आठ बजे शुरू होगी, देखने आइये।
कोई आपसे कहे कि आपकी परीक्षा आठ बजे से है।
कोई आपसे कहे कि मुख्यमंत्री आठ बजे आ रहे हैं, उनकी सभा में आइये।
कोई आपसे कहे कि आपकी गाड़ी का डिपार्चर टाइम आठ बजे है।
इन प्रश्नों का उत्तर क्या है? क्या आप इन पाँचों जगह ठीक आठ बजे पहुँच जाएंगे?
शायद नहीं। इनमें से कुछ जगह आप शायद साढ़े सात बजे ही पहुँच जाएँ, और हो सकता है कहीं आपको पहुँचते-पहुँचते दस भी बज जाएँ।
तो ये कौन तय करता है कि हमें किसकी बात को कितनी गंभीरता से लेना है?
हम खुद। और इसके लिए हम सब के पास एक दिमाग है, जो हमारे ये विभेद तय करता है कि हम किस बात से कितना हट सकते हैं।
हम सब के पास एक अदृश्य रस्सी भी है जो हम ऐसे समय दिमाग़ को दे देते हैं,दिमाग़ चाहे तो इस रस्सी से हमें उस बात से बाँध दे और चाहे तो एक सिरा हमसे बाँध कर दूसरा सिरा ढीला छोड़ दे। यह ढील जितनी होगी, हम उस बात से उतना ही हट पाएंगे।
इसे हम "आदत" कहते हैं ।
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