Tuesday, May 6, 2014

गलती हमारी ही है,

 हम सब बहुत सारे लोग थे, सब एक दूसरे के दोस्त।  हँसते थे, गाते थे, मिलते थे, खिलते थे।  एक दूसरे की सुनते थे, एक दूसरे  की कहते थे।
फिर चुनाव आया।  हम औरों की सुनने लगे।  कोई चिल्लाता था, कोई फुसफुसाता था, कोई  गरजता था, कोई  बरसता था, कोई आग उगलता था, तो कोई बर्फ गिराता था।
बैठ गए हम सब, अपना -अपना  दूध का कटोरा लेकर  नींबू के पेड़ के नीचे !
अब हम सेक्युलर हैं, सांप्रदायिक हैँ, सवर्ण हैं, दलित हैँ, पिछड़े हैँ,उदार हैं, प्रगतिशील हैं, दकियानूसी हैँ, खुद्दार हैँ, चापलूस हैं.
औरों से मत पूछिये, हम हैँ कौन जनाब ?
अपने मन से कीजिये,अपने जन्म-हिसाब!  
  

4 comments:

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

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