Thursday, February 28, 2013

न आणविक, न जैविक, सांस्कृतिक संक्रमण से है खतरा

  जब कोई देश आणविक परीक्षण करता है तो इसकी सफलता उस देश का हौसला बेतहाशा बढ़ा देती है। इसी तरह ऐसे परीक्षणों की विफलता भी मनोबल तोड़ने वाली होती है। यह ठीक ऐसा ही है कि  किसी पहलवान ने अखाड़े में आने से पहले ख़म ठोक करअपनी शक्ति का आभास करा दिया।  हमारे इतिहास की यह विश्वसनीय परम्परा है कि गरजने वाले बरसते नहीं।
यही किस्सा जैविक ताकत का भी है।  इस से होने वाला विध्वंस हमें होता दिखाई देता है, और हम समय रहते सचेत हो जाते हैं। इससे नुक्सान बड़ा नहीं होता।
हाँ, सांस्कृतिक अवमूल्यन की बात अलग है।  यहाँ हमारा परचम फहराता रहता है, हम बेफिक्र रहते हैं, और जड़ों में दीमक लग जाती है. एक दिन भरभरा कर सब गिर जाता है,और हमें कानों- कान खबर नहीं होती। क्योंकि जो मुट्ठी भर बुद्धिजीवी या चिन्तक हमें आगाह कर भी रहे होते हैं, उनकी आवाज़ नक्कार-खाने में तूती  की तरह ही होती है, जिन्हें हम अनसुना करके चल रहे होते हैं।       

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