अर्ध ज्ञानेश्वर माने नीम-हक़ीम।जिसे पता तो हो, पर आधा। हम ऐसे ही हैं।
हमें पता है कि विदेशों में पैसा कैसे रख कर आते हैं, पर यह नहीं पता कि वहां से वापस कैसे लाते हैं।
हमें यह तो पता चल जाता है कि हमें विस्फोट का खतरा है, पर यह नहीं पता कि इस से कैसे बचें।
हमें यह तो पता है कि कीमतें कैसे बढायें, पर यह नहीं पता कि महंगाई घटाएं कैसे।
हमें यह तो पता है कि किसी को कुर्सी पर कैसे बैठाएं, पर यह नहीं पता कि उतारें कैसे।
पर कहीं-कहीं हम समझदार भी हैं। हम जानते हैं कि लोगों की याददाश्त बहुत छोटी होती है, वे जल्दी ही सब भूल जाते हैं। और फिर हम नई भूल करने के लिए आज़ाद हो जाते हैं।
हमें पता है कि विदेशों में पैसा कैसे रख कर आते हैं, पर यह नहीं पता कि वहां से वापस कैसे लाते हैं।
हमें यह तो पता चल जाता है कि हमें विस्फोट का खतरा है, पर यह नहीं पता कि इस से कैसे बचें।
हमें यह तो पता है कि कीमतें कैसे बढायें, पर यह नहीं पता कि महंगाई घटाएं कैसे।
हमें यह तो पता है कि किसी को कुर्सी पर कैसे बैठाएं, पर यह नहीं पता कि उतारें कैसे।
पर कहीं-कहीं हम समझदार भी हैं। हम जानते हैं कि लोगों की याददाश्त बहुत छोटी होती है, वे जल्दी ही सब भूल जाते हैं। और फिर हम नई भूल करने के लिए आज़ाद हो जाते हैं।
सुन्दर अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteआभार ||
Aabhaar aapka, ki adhuri post ka sandesh bhi aapne grahan kiya.
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