लोग कहते हैं कि सगे भाइयों में यदि अनबन या झगड़ा हो तो वह बहुत ज़बरदस्त होता है। जब अन्य किसी परिचित-अपरिचित-मित्र या दुश्मन से मनमुटाव होता है, तो वहां काफी बड़ा भाग स्वाभाविक वैमनस्य का होता है, किन्तु जब सामने सगा भाई हो, तो फिर वैमनस्य नहीं, बल्कि सौमनस्य के तीव्र विखंडन की त्वरित प्रक्रिया होती है।
भारत पाकिस्तान ऐसे ही झगड़ते हैं।
आज मेरे दोनों कान भी आपस में ऐसे ही झगड़े। अब क्योंकि दोनों कान मेरे ही थे, तो वे बिलकुल सगे भाइयों जैसे ही तो हुए। आप कहेंगे कि कान भला कैसे झगड़ सकते हैं? वे दोनों तो बेचारे आपस में एक-दूसरे के पास तक नहीं आ सकते।
लेकिन झगड़ा बिना एक-दूसरे के पास आये भी तो हो सकता है। ठीक वैसे ही, जैसे दो सगे भाई अपने-अपने आँगन से एक दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोल लेते हैं।
आज मेरे पास एक फोन आया कि कुछ लोग "वेलेंटाइन डे" मना रहे हैं। मुझे भी उस कार्यक्रम में आने का निमंत्रण दिया गया। मैं मन ही मन खुश हो गया। मैंने सोचा, प्रेम-प्रीत के त्यौहार में जाने में तो बड़ा मज़ा आएगा। लोगों के अभिसार देखने-सुनने को मिलेंगे।
मैं वहां जाने का ख्याली-पुलाव पका ही रहा था कि एक और फोन आ गया। जिस समय वह फोन आया, मैं कुछ खा रहा था। अतः मैंने वह फोन उलटे हाथ से उठा कर दूसरे कान से लगा लिया। फोन पर कोई कह रहा था कि हम "वेलेंटाइन डे" का विरोध कर रहे हैं। अतः आप भी आ जाइये या फिर हमें इसके विरोध में कुछ अच्छा, दमदार सा लिख कर दे दीजिये।
मेरे दोनों कानों ने अलग-अलग ये दोनों विरोधी स्वर सुने थे, बस, दोनों आपस में लड़ पड़े।उन्होंने जोश में ये भी नहीं सोचा, कि हम दोनों एक ही चेहरे पर चस्पां हैं। सगे भाइयों की तरह लड़ पड़े।
अब दोनों का साथ देना तो किसी भी तरह संभव नहीं था, अतः मैंने किसका साथ दिया, किसे चुप रहने को कहा, यह मैं कल बताऊंगा।
भारत पाकिस्तान ऐसे ही झगड़ते हैं।
आज मेरे दोनों कान भी आपस में ऐसे ही झगड़े। अब क्योंकि दोनों कान मेरे ही थे, तो वे बिलकुल सगे भाइयों जैसे ही तो हुए। आप कहेंगे कि कान भला कैसे झगड़ सकते हैं? वे दोनों तो बेचारे आपस में एक-दूसरे के पास तक नहीं आ सकते।
लेकिन झगड़ा बिना एक-दूसरे के पास आये भी तो हो सकता है। ठीक वैसे ही, जैसे दो सगे भाई अपने-अपने आँगन से एक दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोल लेते हैं।
आज मेरे पास एक फोन आया कि कुछ लोग "वेलेंटाइन डे" मना रहे हैं। मुझे भी उस कार्यक्रम में आने का निमंत्रण दिया गया। मैं मन ही मन खुश हो गया। मैंने सोचा, प्रेम-प्रीत के त्यौहार में जाने में तो बड़ा मज़ा आएगा। लोगों के अभिसार देखने-सुनने को मिलेंगे।
मैं वहां जाने का ख्याली-पुलाव पका ही रहा था कि एक और फोन आ गया। जिस समय वह फोन आया, मैं कुछ खा रहा था। अतः मैंने वह फोन उलटे हाथ से उठा कर दूसरे कान से लगा लिया। फोन पर कोई कह रहा था कि हम "वेलेंटाइन डे" का विरोध कर रहे हैं। अतः आप भी आ जाइये या फिर हमें इसके विरोध में कुछ अच्छा, दमदार सा लिख कर दे दीजिये।
मेरे दोनों कानों ने अलग-अलग ये दोनों विरोधी स्वर सुने थे, बस, दोनों आपस में लड़ पड़े।उन्होंने जोश में ये भी नहीं सोचा, कि हम दोनों एक ही चेहरे पर चस्पां हैं। सगे भाइयों की तरह लड़ पड़े।
अब दोनों का साथ देना तो किसी भी तरह संभव नहीं था, अतः मैंने किसका साथ दिया, किसे चुप रहने को कहा, यह मैं कल बताऊंगा।
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