मन्त्रों में शक्ति है। लेकिन इस शक्ति का स्वभाव कैसा है? क्या यह मंत्र जहाँ होते हैं, वहां उपस्थित सभी लोगों पर असर करने लगते हैं? या फिर इनका कोई विधान है? यह जिनके द्वारा उच्चारित होते हैं, उन्हीं को फल देते हैं, या फिर जो उन्हें सुन ले, उसी को फलने लगते हैं?
यह सब जिज्ञासा इसलिए उपस्थित हो रही है, क्योंकि लगभग सभी जगह संस्कृत शिक्षा का प्रचलन कम हो रहा है,और हमारे ज़्यादातर मंत्र "देवभाषा" संस्कृत में ही हैं। वैसे भी, लम्बे समय तक हमारी समस्या यह थी कि अधिकांश लोगों को अक्षरज्ञान नहीं था। ऐसे में जन्मोत्सव, यज्ञोपवीत, विवाह, मृत्यु आदि पर पढ़े गए मंत्र, स्वयं हितग्राही द्वारा न पढ़ कर, किसी अन्य विद्वान द्वारा पढ़े जाते रहे। कई बार कहा जाता है कि यदि आप किसी पंडित द्वारा मंत्रोच्चार करवा कर उसे यज्ञ का खर्च देदें तो आपको उसका पुण्य-प्रताप मिल जाता है। ऐसे में यह जिज्ञासा होना भी स्वाभाविक है, कि इन मन्त्रों की शक्ति इनके बोलने-सुनने में छिपी है, या इनसे सम्बंधित खर्च में?
यह सब जिज्ञासा इसलिए उपस्थित हो रही है, क्योंकि लगभग सभी जगह संस्कृत शिक्षा का प्रचलन कम हो रहा है,और हमारे ज़्यादातर मंत्र "देवभाषा" संस्कृत में ही हैं। वैसे भी, लम्बे समय तक हमारी समस्या यह थी कि अधिकांश लोगों को अक्षरज्ञान नहीं था। ऐसे में जन्मोत्सव, यज्ञोपवीत, विवाह, मृत्यु आदि पर पढ़े गए मंत्र, स्वयं हितग्राही द्वारा न पढ़ कर, किसी अन्य विद्वान द्वारा पढ़े जाते रहे। कई बार कहा जाता है कि यदि आप किसी पंडित द्वारा मंत्रोच्चार करवा कर उसे यज्ञ का खर्च देदें तो आपको उसका पुण्य-प्रताप मिल जाता है। ऐसे में यह जिज्ञासा होना भी स्वाभाविक है, कि इन मन्त्रों की शक्ति इनके बोलने-सुनने में छिपी है, या इनसे सम्बंधित खर्च में?
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