हमारे फिल्मकारों की कलई धीरे-धीरे खुलती जा रही है। जब उनसे कहा जाता है कि वह हिंसा और अपराध दिखाते हैं, जिससे समाज में हिंसा और अपराध फैलते हैं, तो वे यह कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं कि हम तो वही दिखाते हैं जो समाज में पहले से हो रहा है। लेकिन अब धीरे-धीरे ऐसी कई बातें हो रही हैं, जो फिल्मों में पहले से ही होती रही हैं।
हमारे आम फ़िल्मी-दर्शक "कुम्भ" के बारे में यही जानते हैं कि यह एक ऐसा भीड़-भरा मेला होता है जिसमें फिल्मों के जुड़वां भाई या जुड़वां बहनें आपस में बिछड़ जाते हैं।
आज सचमुच कुम्भ की यही फ़िल्मी प्रतिष्ठा दाव पर लगी है। हमारे राजनैतिक अखाड़ों के कई खलीफा "कुम्भ" में डुबकी लगाने जा रहे हैं। देखें, किसे अपने 'बिछड़े' मिलते हैं, और कौन अपनों से 'बिछड़ता है?
हमारे आम फ़िल्मी-दर्शक "कुम्भ" के बारे में यही जानते हैं कि यह एक ऐसा भीड़-भरा मेला होता है जिसमें फिल्मों के जुड़वां भाई या जुड़वां बहनें आपस में बिछड़ जाते हैं।
आज सचमुच कुम्भ की यही फ़िल्मी प्रतिष्ठा दाव पर लगी है। हमारे राजनैतिक अखाड़ों के कई खलीफा "कुम्भ" में डुबकी लगाने जा रहे हैं। देखें, किसे अपने 'बिछड़े' मिलते हैं, और कौन अपनों से 'बिछड़ता है?
Dhanyawad.
ReplyDeleteसामायिक व्यंग देश की राजनीतिक नौटंकी पे
ReplyDeleteDhanyawad
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