गुज़रे ज़माने के कई उदाहरण आपको ऐसे मिलेंगे कि कोई फ़िल्मी सितारा पहले बुलंदियों पर था, फिर उसने गर्दिश के दिन देखे, और वह बर्बाद हो गया। महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि लोग उसकी कला को सराहते भी जाते थे, पर उसे नेस्तनाबूद होने से रोक भी नहीं पाते थे। होता यह था, कि जिस वक्त वह कलाकार या सफल सितारा होता था, उस समय वह और कुछ नहीं होता था। अतः जैसे ही उसकी कला चुकी, या उसका नसीब सिमटा,वह बर्बादी के कगार पर आ जाता था।
अब ऐसा नहीं होता। अब 'फिल्म' उसका कैरियर होता है। उसके रिटायरमेंट बेनिफिट्स होते हैं, और जब वह फिल्मों से निवृत्त होता है, या असफल होता है, तो उसके पास बीसियों विकल्प होते हैं। इसलिए वह बुरे दिन नहीं देखता।
लेकिन गुणीजन कहते हैं कि वह कलाकार नहीं, व्यवसाई होता है। मतलब यह, कि सितारों की दुनियादारी दुनिया को रास नहीं आती। "सितारा तो वही है, जो चमके या टूटे", ये क्या, कि पहले चमके, फिर चुपचाप बैठ गए।
अब ऐसा नहीं होता। अब 'फिल्म' उसका कैरियर होता है। उसके रिटायरमेंट बेनिफिट्स होते हैं, और जब वह फिल्मों से निवृत्त होता है, या असफल होता है, तो उसके पास बीसियों विकल्प होते हैं। इसलिए वह बुरे दिन नहीं देखता।
लेकिन गुणीजन कहते हैं कि वह कलाकार नहीं, व्यवसाई होता है। मतलब यह, कि सितारों की दुनियादारी दुनिया को रास नहीं आती। "सितारा तो वही है, जो चमके या टूटे", ये क्या, कि पहले चमके, फिर चुपचाप बैठ गए।
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