Saturday, July 16, 2011

उन सत्तर महिलाओं का क्या होगा?

क्षमा कीजिये, आलेख का शीर्षक ही गलत हो गया. कृपया इसे यों पढ़ें- उन सत्तर पुरुषों का क्या होगा? यदि किसी एक व्यक्ति पर भी संकट आता है तो लोग सरकार को विफल बताने लगते हैं, और स्तीफा मांगने लग जाते हैं. अब एक- दो नहीं, पूरे सत्तर व्यक्तियों पर संकट आया है. कौन उन्हें खाना देगा? कौन उनके लिए करवा-चौथ का व्रत रखेगा? कौन उनके लिए मंगल-सूत्र पहनेगा?  ये सत्तर लोग किसी विमान अपहरण में नहीं फंसे, अपने-अपने घर आराम से बैठे हैं. पर आखिर कब तक बैठेंगे? माँ, बाप, भाई, बहन आखिर कब तक इनका ध्यान रख सकते हैं? एक न एक दिन तो इन का संकट गहराना ही है.  सबसे बड़ी बात यह है कि यदि ये सत्तर व्यक्ति अकेले होते तो फिर भी किसी तरह इनकी अनदेखी करके इन्हें इनके हाल पर छोड़ा जा सकता था, किन्तु ये अकेले नहीं हैं. इनके साथ हर एक हज़ार में से सत्तर लोग और हैं. सोचिये, इस तरह एक सौ इक्कीस करोड़ में से कुल कितने पुरुष संकट में हैं. इनके लिए महिलाएं हैं ही नहीं. [हालाँकि कई लोग यह सोच कर भी खुश हो रहे होंगे कि चलो, कम से कम हर एक हज़ार में से सत्तर तो खुशनसीब रहेंगे]

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हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...