मेरी एक चाची थीं. एकदम घरेलू. उनके मुंह से मैंने कभी नमक-मिर्च या साग-सब्जी के अलावा और कोई बात नहीं सुनी. लेकिन एकदिन अचानक मैंने उनके सरोकारों में बड़ा बदलाव देखा. वे बात-बात पर 'फिनलैंड' का नाम ले रहीं थीं. वे बाज़ार से लौटीं, तो उनकी बेटी ने कहा- मम्मी, आप सैंडिल अच्छे नहीं लाई हो. वे बोलीं-अब मुझे तो जैसे मिले मैं ले आई, ये कोई फिनलैंड तो है नहीं कि पचास वैराइटी मिल जातीं.मुझे यह समझ में नहीं आया कि चाची ने फिनलैंड के बाज़ार कब देख लिए. कई बार उनके मुंह से इसी तरह फिनलैंड का नाम सुना. एकदिन पडौस से मिलकर लौट रहीं थीं, कि लड़के को रसोई में कोई काम करते देख बोल पड़ीं - अरे ज़रा रुक नहीं सकता, मैं क्या फिनलैंड चली गई थी जो अपने आप चाय बनाने लगा.आखिर उनके इस फिनलैंड प्रेम का राज़ भी खुला. गर्मियों की रात में हम सब सोने के लिए छत पर आ चुके थे. चाची चुपचाप लेटी तारों की ओर देख रही थीं,मैंने पूछा- चाची, आपको सबसे अच्छा देश कौन सा लगता है? उनके जवाब ने मुझे हिंदी का एक मशहूर मुहावरा याद दिला दिया. आप गैस कर सकते हैं, कौन सा होगा वह मुहावरा?
प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
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