नेताओं का एक बड़ा गुण यह होता है कि वे "कहते हैं".कोई भी समाचार-पत्र हो,न्यूज़-चैनल हो, या रेडिओ हो, आपको हर समय यह सुनने को मिलेगा- फलां नेता ने यह कहा, वह कहा. शब्द उनके मुंह से आठों पहर फूलों की तरह झरते ही रहते हैं. और मीडिया-कर्मी किसी कुशल माली की तरह झोली फैला कर यह फूल चुनते ही रहते हैं. [बाद में यही जनता को 'फूल' बनाने के काम भी आते हैं] खैर, जनता कौन सी कम है? एक ताज़ा सच्चा किस्सा सुनिए.
मेरे एक मित्र की पत्नी एक कालेज में पढ़ाती हैं. वह क्लास लेने गई हुई थीं कि पीछे से घर की नौकरानी आई. घर पर ताला बंद था, मगर भीतर से जोर-जोर से पानी बहने की आवाज़ आ रही थी.इससे पहले कि बहती गंगा दरवाज़े से बाहर आती, नौकरानी ने मोबाइल पर मालकिन को इसकी सूचना देदी. टंकी खाली हो जाने के परिणाम मालकिन जानती थीं, अतः उन्होंने क्लास को भंग किया, बच्चों को छुट्टी दी, और अपना स्कूटर उठा कर घर की ओर दौड़ीं. हड़बड़ी में उन्हें यह भी ध्यान न रहा कि उनके स्कूटर की लाइट दिन-दहाड़े जलती आ रही है. वे आनन्-फानन में घर पहुँचीं, और उन्होंने नल बंद करके ही सांस ली.
अब उनका ध्यान उस छोटे से स्टिकर पर गया, जो उनके ही स्कूटर पर चिपका हुआ था. उस पर एक लोकप्रिय नेताजी की तस्वीर के साथ उनका दिया हुआ नारा लिखा हुआ था- 'पानी बचाओ, बिजली बचाओ, सबको पढाओ'.
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