उसने मुझे फोन किया कि अगले दिन मैं "मुख्य-अतिथि" के रूप में उसके कार्यालय आऊं.मेरे स्वीकृति दे देने के बाद वह बेहद खुश और उत्साहित हो गया. रात को आठ बजे मेरी उस से बात हुयी, और अगले दिन शाम चार बजे मुझे उसके दफ्तर पहुंचना था. बीच में बीस घंटे का समय था. इन बीस घंटों में मेरे पास उसके चौदह फोन आये. क्या-क्या कहा उसने,आप कल्पना कर सकते हैं? चलिए, कल मैं आपको बताता हूँ उसके फोन की पूरी कॉल-डिटेल्स.
प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
Wednesday, July 13, 2011
जब वह उन्नीस साल का हुआ, उसने तय कर लिया कि वह शारीरिक यातनाओं से डर कर राष्ट्रभाषा से दूर नहीं जायेगा. वह अपना शहर छोड़ कर मुंबई आ गया. यहाँ उसकी मेहनत रंग लाई और वह एक दक्षिण-भारतीय बैंक में हिंदी अधिकारी बन गया. अपने सहकारियों की उदासीनता और अधिकारियों की उपेक्षा के बावजूद उसने अपने दफ्तर में एक दिन हिंदी-दिवस मनाया. जानते हैं कैसे?
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हम मेज़ लगाना सीख गए!
ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...
Lokpriy ...
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