अपने जन्म-स्थान को लेकर लगाव तो कमोवेश सभी में होता है, किन्तु कुछ लोग इसी जगह को अपने जीवन की धुरी मान लेते हैं, और इससे ज्यादा दूर जाने में असुविधा महसूस करते हैं. जबकि कुछ लोग सारी दुनिया को चारों ओर से देखना चाहते हैं.इतना ही नहीं, बल्कि लोगों की मनोवृत्ति में एक अंतर और है. कुछ लोग अपनी जगह के अच्छे-बुरे से पूरी तरह विमुख होते हैं, उन्हें इस बात में कुछ खास दिलचस्पी नहीं होती कि कहाँ क्या हो रहा है,जबकि कुछ लोग अपनी जगह से दूर जाकर भी उसके प्रति पूरी तरह सजग और संवेदनशील होते हैं. भारत के राजस्थान प्रान्त के रहवासियों ने तो अमेरिका में जाकर और वहां बस कर भी "राना"जैसी संस्था बनाई है जो न केवल वहां राजस्थान-वासियों को संगठित रखे हुए है, बल्कि वहां के लोगों की गतिविधियों को भी यहाँ पहुंचा कर लोगों में उस भू-भाग के प्रति रूचि जाग्रत कर रही है.
जबकि इसी देश में आपको ऐसे भी बहुसंख्य लोग मिलेंगे जो अपने जन्म-स्थान से पांच किलोमीटर दूर तबादला हो जाने पर नौकरी छोड़ने तक को तैयार हो जाते हैं. ऐसे लोगों का अधिकांश समय, पैसा और शक्ति इसी बात में खर्च होती है कि किस तरह सिफारिश,रिश्वत और दबदबे से आजीवन अपनी जगह ही बने रहा जाय
लेकिन दक्षिण अमेरिकी देशों में अपने देश या शहर से ज्यादा दूर न जाने का कारण बिलकुल दूसरा है.वहां सम्पन्नता, कार्य और जीवन की हलचल हर अंचल में इस तरह से उपलब्ध है कि लोगों को पलायन की ज़रुरत महसूस नहीं होती.
जगह-जगह पर पर्यटन के लिए घूमते सैलानियों से बात कर के देखिये, यह दिलचस्प तथ्य आपके सामने आएगा कि उनमे यूरोप,चीन, जापान या अमेरिका के लोगों की संख्या जितनी है उनके मुकाबले दक्षिण अमेरिका या फिर सुदूर एशियाई देशों की संख्या अपेक्षाकृत काफी कम है. हाँ, एक अपवाद को यहाँ रेखांकित करना ज़रूरी है. चीनी लोगों में जो लोग आपको मिलेंगे वे केवल पर्यटन के लिए आये लोग नहीं होंगे बल्कि उनमे आपको उद्यमिता की वजह से घूमते लोगों की अच्छी-खासी तादाद मिलेगी.
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