भ्रष्टाचार कोई भी कर सकता है. कोई देश भी. अगर एक शहर में सौ लोग भीख मांगें, और दूसरे उतने ही बड़े शहर में दो लोग भीख मांगें, तो कोई भी पहले शहर को 'भिखमंगा' करार देगा. मान लीजिये, थोड़ी और तहकीकात होती है, और यह पता चलता है कि पहले शहर में सौ लोगों ने एक वक्त का खाना मांगा था, दूसरे शहर में दो लोगों ने किसी से कार मांग ली. भीख का परिमाण पहले शहर में दस हज़ार रूपये रहा, और दूसरे शहर में दस लाख रहा. अब इस प्रश्न के कई उत्तर हैं, कि कौन सा शहर ज्यादा भिखमंगा है. थोड़ी देर के लिए हम 'भीख' को भ्रष्टाचार से बदल लें.
पहले शहर में सौ लोगों ने किसी सरकारी दफ्तर में किसी का कोई छोटा-मोटा काम करके रिश्वत स्वरुप सौ-सौ रूपये मांग लिए. दूसरे शहर में दो लोगों ने किसी बड़े काम की दलाली में दो कारें मांग लीं.अब सांख्यिकी कार फिर आपको अलग-अलग तरह से समझा सकते हैं कि भ्रष्टाचार कहाँ ज्यादा रहा.
एक चिड़िया से किसी ने पूछा- क्यों री, तू हर समय फुदकती हुई इधर से उधर कहाँ भागती फिरती है? तुझे कहाँ जाने की जल्दी रहती है? चिड़िया बोली- मैं अजगर होती तो कहीं नहीं जाती, पड़ी रहती एक जगह आराम से,
न मुझे किसी का डर होता और न ही मैं ज्यादा देर भूखी रहती, जो भी यहाँ आता, उसे निगल जाती.
वार्तालाप सुन कर अजगर से न रहा गया. वह आलस्य छोड़ कर बोला- ज्यादा सती-सावित्री मत बन, मैं उसी को खा रहा हूँ, जो यहाँ आ रहा है, तू तो फुदक-फुदक कर चारों ओर का माल समेट कर निगल रही है.
भ्रष्टाचार के इन्द्रधनुष से कोई भी आँख कोई सा भी रंग देखने को आज़ाद है.
अच्छे बिन्दु सामने रखे हैं आपने। क्वांटिटी बनाम क्वालिटी की बात करते समय भी इतना ध्यान रखना पडेगा कि:
ReplyDelete- समाज के कितने लोग इस भ्रष्टाचार को रोज़ छुए बिना अपना जीवन गुज़ार सकते हैं?
- भ्रष्टाचार-शून्य समाज के लिये कितने लोग सुधरने की ज़रूरत है
bahut sahi kaha hai aapne, ham anya kashton-dukhon ki tarah bhrashtaachaar ko bhi do vargon me baant len, sahneey aur asahneey. asahneey bhrshtaachaar ke liye daktar ke paas jayen, sahneey ka ghareloo upchaar karlen. bilkul bhrashtaachaar-mukt to kabhi-kahin-koi samaj nahin raha.
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