बात के बीच में छूट जाने का मलाल, न जाने क्यों, आज नहीं हो रहा. क्योंकि वह बात ही कुछ ऐसी थी. मैं मुंबई के बम-धमाके पर कह रहा था. ईश्वर करे,ये बातें करने की ज़रुरत कभी ,कहीं, किसी को न पड़े. मैं नेताओं की वाचालता पर कह रहा था. मैं सरकार की चुप्पी पर कह रहा था.मैं मुल्क के रहनुमाओं की आपदा-अभ्यस्तता पर कह रहा था. वे जनता के दुःख सहने में सिद्धहस्त हैं. हाँ, अपने कष्टों पर वे कुछ भी कर सकते हैं, कुछ भी.
प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
Friday, July 15, 2011
prakriti chahti thee ki ham maun rahen,kuchh n kahen, kuchh n sunen.
कल जब मैं आपसे बात कर रहा था, जयपुर में बहुत तेज़ बरसात हुयी. राजस्थान में बरसात का होना किसी त्यौहार की तरह होता है. लिहाज़ा बरसात का बहता मंज़र देखने मैं भी खिड़की पर चला आया. इस से हुआ ये कि मैं जो आपसे बात कर रहा था वह अधूरी ही रह गई और परदे से ओझल भी हो गई.
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