वैसे तो शिक्षा को व्यापारिक या औद्योगिक कारोबार मानने में थोड़ी सी हिचक सारी दुनिया ने ही दिखाई, पर अमेरिका की बनिस्बत दक्षिणी अमेरिकी देशों का फलसफा ज्यादा 'दर्शन आधारित' है. यही कारण है कि वहां शिक्षा में आधुनिकता की तुलना में शास्त्रीयता का पुट ज़रा ज्यादा है. और इसी कारण दुनिया के अन्य देशों के विद्यार्थियों में अमेरिकी शिक्षा की ललक ज्यादा है. शास्त्रीयता तो वैसे भी समय से पीछे मानी जाती है.
शास्त्रीयता का यह फलसफा इस तरह समझा जा सकता है. व्यापार या कारोबार में एक की वस्तु दूसरे के स्वामित्व में जाती है,इसके एवज में पहले को दूसरे से धन प्राप्त होता है, जो प्रायः वस्तु की कीमत और मुनाफे का जोड़ होता है.
शिक्षा के मामले में "ज्ञान" एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को जब हस्तांतरित होता है तो स्थिति ज़रा अलग होती है. यहाँ पहला व्यक्ति दूसरे को ज्ञान देकर स्वयं ज्ञान से वंचित नहीं होता, बल्कि यह एक प्रकार से ज्ञान का विस्तार ही होता है. अतः यहाँ ज्ञान की पूरी कीमत और मुनाफे का जोड़ दूसरे से नहीं वसूला जा सकता. क्योंकि ज्ञान पहले के पास भी बना हुआ है, जबकि पहले मामले में वस्तु देकर पहला व्यक्ति पूरी तरह वस्तु से वंचित हो जाता है.
हाँ, यहाँ पर शिक्षा या ज्ञान के विस्तार का मूल्य मुनाफे सहित अवश्य वसूला जा सकता है, जो मूल मूल्य से काफी कम होगा. इसीलिए कहा जाता है कि शिक्षा को बेचा नहीं जा सकता, बल्कि कुछ कीमत पर उसकी व्यवस्था की जा सकती है.
दक्षिणी अमेरिकी देशों में इसी सोच ने शिक्षा को ज्यादा महंगा नहीं होने दिया, और परिणाम-स्वरुप इसी बात ने अन्य देशों के लोगों के लिए वहां की शिक्षा का आकर्षण अमेरिकी शिक्षा के बराबर नहीं होने दिया.
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